सतर्क हो जायें अखिलेश यादव, धर्मेन्द्र के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा है कोई

सतर्क हो जायें अखिलेश यादव, धर्मेन्द्र के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा है कोई

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव को किनारे करने के बावजूद समाजवादी पार्टी में अब भी सब कुछ सही नहीं चल रहा है। एक-दूसरे को कमजोर करने की चालें निरंतर जारी हैं। विदुर रूपी कूटनीतिज्ञ का निशाना शायद, अब धर्मेन्द्र यादव हैं, उन्हें लगातार कमजोर करने की चालें चली जा रही हैं।

जहाँ सत्ता होती है, वहां षड्यंत्र होने स्वाभाविक ही हैं और षड्यंत्र हमेशा लोकप्रिय व्यक्ति के विरुद्ध ही किये जाते हैं, क्योंकि चापलूसी के माध्यम से मलाई खाने वाले जमीन पर कड़ी मेहनत करने वाले का मुकाबला कर ही नहीं सकते। हाल-फिलहाल हुए घटनाक्रम से लग रहा है कि धर्मेन्द्र यादव षड्यंत्रों का शिकार हो रहे हैं।

सपा-बसपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ तो, सपा-बसपा ने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के विरुद्ध प्रत्याशी न उतारने की घोषणा कर दी लेकिन, बदायूं लोकसभा क्षेत्र के सांसद धर्मेन्द्र यादव के विरुद्ध सबसे पहले प्रत्याशी की घोषणा कर कांग्रेस ने भी कह दिया कि वह भी सपा-बसपा के बड़े नेताओं के विरुद्ध प्रत्याशी नहीं उतारेगी, इस पर सपा की ओर से बदायूं पर आपत्ति नहीं जताई गई, जबकि पूरे परिवार में धर्मेन्द्र यादव अखिलेश यादव के सर्वाधिक वफादार हैं और जमीन पर भी सर्वाधिक मेहनत करते हैं, इसके अलावा लोकसभा में अखिलेश यादव का नाम लिए बिना कभी भाषण शुरू नहीं करते, ऐसे समर्पित व्यक्ति के पक्ष में अखिलेश यादव का खड़ा न होना समझ से परे ही है।

अभयराम यादव मुलायम सिंह यादव के सगे भाई हैं, जबकि प्रो. रामगोपाल यादव चचेरे और मौसेरे भाई हैं। धर्मेन्द्र यादव अभयराम यादव के बेटे हैं और अक्षय प्रताप प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे हैं। मेहनत और समर्पण से हट कर बात की जाये तो, रिश्तों की दृष्टि से अखिलेश यादव के धर्मेन्द्र यादव ज्यादा नजदीकी हैं लेकिन, अखिलेश यादव धर्मेन्द्र यादव को वह सम्मान नहीं दे रहे, जिसके वे अधिकारी भी हैं।

चर्चा यूं ही नहीं उठी है। असलियत में समाजवादी पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, जिसमें कई ऐसे नाम हैं, जिन्हें जनसभा के लिए शायद ही कोई आमंत्रित करे, जबकि धर्मेन्द्र यादव की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत पकड़ है, वे हर लोकसभा क्षेत्र में जाते रहे हैं, वहां के प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं से उनके मजबूत संबंध हैं, इस सबके बावजूद धर्मेन्द्र यादव का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में नहीं है। धर्मेन्द्र यादव 15 वर्ष से सांसद रहे हैं, इसलिए भी उनका अधिकार है पर, तीसरी पीढ़ी के उस तेजप्रताप सिंह का नाम है, जिसे मंच पर सही से अभी बोलना तक नहीं आता।

हालाँकि मुलायम सिंह यादव भी स्टार प्रचारक नहीं बनाये गये हैं, वे उम्रदराज हो गये हैं, साथ ही कुछ भी कह जाते हैं, इस डर में उन्हें नहीं बनाया गया होगा। तेजप्रताप को इस बार टिकट नहीं दिया गया है, उस नाराजगी को दबाने के साथ यह भी सोचा होगा कि वे लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं, चुनाव परिणामों के बाद कोई समीकरण बना तो, वे बिहार से राजनैतिक ताकत लाने में मदद करेंगे।

खैर, जिन्हें स्टार प्रचारक बनाया गया है, सवाल उन पर नहीं है। सवाल धर्मेन्द्र यादव को लेकर ही उठाया जा रहा है। अखिलेश यादव का हर समय गुणगान करने वाले, जमीन पर कड़ी मेहनत करने वाले, लोकसभा में दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज बनने वाले धर्मेन्द्र यादव को स्टार प्रचारक न बनाने पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है, यह सवाल इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि 17 नेताओं की सूची में बदायूं के निवासी यासीन अली उस्मानी का भी नाम है। कोई चतुर खिलाड़ी लक्ष्मण जैसे भाई को किनारे करना चाहता है, ऐसे षड्यंत्रकारी से अखिलेश यादव को सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि वफादार का नुकसान होने से स्वयं का नुकसान होता है।

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