रिश्वत न देने पर पुलिस का तांडव, युवक की मौत, पुलिस को बचाने में जुटे अफसर

रिश्वत न देने पर पुलिस का तांडव, युवक की मौत, पुलिस को बचाने में जुटे अफसर

बदायूं जिले में पुलिस का तांडव लगातार बढ़ता जा रहा है। लॉक डाउन के चलते पुलिस पर राजनैतिक दबाव भी नहीं है, जिससे पुलिस खुलेआम जमकर गुंडई करने लगी है। गोकशी का आरोप लगा कर पुलिस लोगों से मोटी रकम वसूल रही थी। एक युवक ने रिश्वत नहीं दी तो, बीती रात पुलिस ने जमकर तांडव कर दिया, जिससे युवक की मौत हो गई। अब पुलिस स्वयं को बचाने में जुटी हुई है।

सनसनीखेज प्रकरण उसहैत थाना क्षेत्र के गाँव भंदरा का है। बताते हैं कि गाँव में तीन-चार दिन पहले गोकशी की वारदात हुई थी, जिसमें पुलिस किसी को भी उठा कर मोटी रकम वसूलने का अभियान चला रही थी। घटना स्थल के निकट अब्दुल बशीर (55) की मूंगफली की फसल है, इसी आधार पर पुलिस अब्दुल बशीर का भी शोषण कर रही थी। दो दिन पहले अब्दुल बशीर का घर भी खंगाला था, इस दौरान कुछ नहीं मिला था तो, पुलिस ने कह दिया था कि आप लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।

अब्दुल बशीर पुलिस को रिश्वत देने नहीं गया, जिससे दबाव बनाने के इरादे से पुलिस ने बीती रात अब्दुल बशीर के घर पर धावा बोल दिया और जमकर तांडव करते हुए अब्दुल बशीर की बेरहमी से मार लगाई, जिससे अब्दुल बशीर की मौके पर ही मौत हो गई। घटना के बाद पुलिस भाग गई। बात मीडिया तक पहुंची तो, हड़कंप मच गया। एएसपी सिटी जितेन्द्र श्रीवास्तव पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गये लेकिन, पुलिस अफसर कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं।

सूत्रों का कहना है कि मृतक का मुकदमा में उल्लेख नहीं है लेकिन, पुलिस पर्चा काट कर उसका नाम बढ़ाने का प्रयास कर रही है ताकि, दबिश देने का आधार बनाया जा सके। मृतक के बेटे की मांग है कि उसहैत थाने के 12 पुलिस कर्मियों ने एसओ अमृत लाल के साथ दबिश देकर तांडव किया था, इन सबको तत्काल निंलबित किया जाये। गाँव में भी पुलिस के प्रति रोष नजर आ रहा है।

सवाल यह है कि गोकशी की वारदात हुई तो, उसमें मुकदमा दर्ज करने के बाद कार्रवाई करना चाहिए थी। संदिग्धों के विरुद्ध साक्ष्य जुटाने चाहिए थे। किसी भी आरोपी के घर पर तांडव करने का अधिकार पुलिस को किसने दे दिया? आम जनता के प्रति जवाबदेही बची हो तो, अफसरों को त्वरित कार्रवाई करना चाहिए, क्योंकि पुलिस की मनमानी के चलते तानाशाही शासन व्यवस्था लागू होने का संदेश आम जनता के बीच लगातार जा रहा है।

उधर पुलिस अफसर मीडिया को कुछ भी बताने को तैयार नहीं है, जिससे घटना की पृष्ठभूमि के संबंध में पुलिस के पक्ष का पता नहीं चल पा रहा है। पुलिस की मनमानी से तंग आकर पत्रकारों ने पुलिस के पीआरओ ग्रुप से स्वयं को बाहर कर लिया है। पुलिस की कार्यप्रणाली से लग रहा है कि लोकतंत्र में उसकी कोई आस्था नहीं बची है।

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