इन कारणों से गिराई गई पूर्व विधायक रामसेवक सिंह पटेल की कोठी, जेसीबी दे गईं जवाब

इन कारणों से गिराई गई पूर्व विधायक रामसेवक सिंह पटेल की कोठी, जेसीबी दे गईं जवाब

बदायूं के मोहल्ला जवाहरपुरी में स्थित पूर्व विधायक रामसेवक सिंह पटेल की कोठी ध्वस्त कर दी गई है। हालांकि कोठी के पिलर इतने मजबूत हैं कि तीन जेसीबी भी जवाब दे गईं पर, पिलर नहीं टूटे, जिससे दीवारों को ध्वस्त कर हाल-फिलहाल औपचारिकता पूरी कर दी गई है। डीएम कुमार प्रशांत ने बताया कि कोठी कब्रिस्तान की जमीन पर थी, गलत तरीके से कागजों में नाम दर्ज कराया गया था, साथ ही कोठी का नक्शा भी पास नहीं था, वहीं राम सेवक सिंह पटेल स्वयं को सही बताते हुए राजनैतिक दबाव में की गई कार्रवाई बता रहे हैं, उनका कहना है कि कुछ ग्रामीणों के दबाव में भाजपा नेताओं की सिफारिश पर कार्रवाई की गई है, जबकि असलियत यह है कि वे कई स्तरों से इस प्रकरण में मुकदमा हार चुके हैं।

उक्त प्रकरण में प्रशासन पर राजनैतिक दबाव रहा होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है पर, सवाल यह है कि सब कुछ सही होता तो, प्रशासन कोठी को ध्वस्त कर सकता था क्या? एक सिस्टम है, जिसमें सबके ऊपर कोई न कोई अफसर बैठा है, इसके अलावा न्यायालय है, जो गलत करने वालों को दंडित करने को स्वतंत्र है। रामसेवक सिंह पटेल पांच बार विधायक रहे हैं, वे कानून के जानकार हैं, उन पर कोई सिर्फ दबाव में कार्रवाई नहीं कर देगा, इसलिए  उनके इस दावे में सच्चाई नहीं है कि कोई सिर्फ दबाव में कोठी गिरा देगा।

कोठी कब्रिस्तान की जमीन पर थी और नक्शा पास नहीं है, यही दो कारण काफी हैं, इस भूमि को ही कागजों में हेर-फेर कर के लेखपाल और कानूनगो ने रामसेवक सिंह पटेल के नाम पर दर्ज कर दिया था, जो गंभीर अपराध है, इस प्रकरण में संबंधित लेखपाल और कानूनगो पर मुकदमा भी दर्ज हो चुका है, इसके अलावा नगला शर्की में अशोक बाल्मीकि नाम के व्यक्ति को पट्टा दिया गया था, इस भूमि के एक हिस्से पर पंचायत घर बनवा दिया है और शेष भाग को रामसेवक सिंह पटेल के परिजनों के नाम पर दर्ज कर दिया गया है, जबकि नियमानुसार ऐसा नहीं किया जा सकता है।

रामसेवक सिंह पटेल दबंग किस्म के नेता माने जाते रहे हैं, उनका नाम पहली बार 1989 के दंगों में उछला था, उसके बाद उनकी हिंदूवादी छवि बन गई, इस छवि के कारण ही वे पांच बार विधायक चुने गये हैं। भाजपा के साथ रहे, उमा भारती ने विद्रोह किया तो, उनके साथ चले गये और उनकी पार्टी से एक मात्र विधायक चुने गये, फिर बसपा में शामिल हो गये और उसके बाद पुनः भाजपा में टिकट मांगने लगे। पिछले चुनाव में महेश चंद्र गुप्ता को टिकट मिला तो, वे शिवसेना से टिकट ले आये और हार गये, इसके बाद वे भाजपा में विधिवत शामिल नहीं किये गये हैं लेकिन, हाल-फिलहाल स्वयं को भाजपा का ही बता रहे हैं। विधान सभा क्षेत्रों का परिसीमन हुआ, इसके बाद बदायूं विधान सभा क्षेत्र भी बदल गया, उनके समर्थकों का बड़ा हिस्सा इधर-उधर बंट गया, इससे रामसेवक सिंह पटेल की राजनैतिक शक्ति भी कम हो गई।

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