सलीम शेरवानी और आबिद रजा की मुलाकात से राजनैतिक पारा चढ़ा

सलीम शेरवानी और आबिद रजा की मुलाकात से राजनैतिक पारा चढ़ा

बदायूं की राजनीति में बड़े घटनाक्रम होने शुरू हो गये हैं। पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री व कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी सलीम इकबाल शेरवानी कद्दावर नेता व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा की कोठी पर पहुंचे। सलीम इकबाल शेरवानी और आबिद रजा की मुलाकात होने की खबर शहर में आग कि तरह फैल गई। हर आदमी मुलाकात के मायने निकालने में जुटा नजर आ रहा है।

सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के लंबे समय तक सांसद रहे हैं। वर्ष- 2009 में समाजवादी पार्टी ने धर्मेन्द्र यादव को टिकट दे दिया था, जिसके बाद सलीम इकबाल शेरवानी कांग्रेस में चले गये थे, वे चुनाव हार गये थे लेकिन, उन्हें अपेक्षा से ज्यादा वोट मिले थे।

वर्ष- 2009 से पहले सलीम इकबाल शेरवानी और आबिद रजा के बीच गहरे संबंध थे। आबिद रजा पालिकाध्यक्ष के रूप में न सिर्फ शहर में बल्कि, जिले भर में लोकप्रिय हो चुके थे लेकिन, दोनों के बीच दरार आ गई थी। वर्ष- 2009 के लोकसभा चुनाव में आबिद रजा ने सलीम इकबाल शेरवानी का विरोध किया था। आबिद रजा का विरोध करना भी सलीम इकबाल शेरवानी की हार का एक प्रमुख कारण माना जाता है।

इसके बाद आबिद रजा समाजवादी पार्टी में आ गये और विधायक बन गये, जिससे वे मुस्लिमों के बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गये। वर्ष- 2014 का चुनाव समाजवादी पार्टी की सरकार में हुआ था, ऐसे में सत्ता पक्ष के प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा की लोकप्रियता से जूझने की जगह सलीम इकबाल शेरवानी आंवला लोकसभा क्षेत्र में चले गये पर, वहां वे जम नहीं पाये और बुरी तरह हार गये।

अब समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं है और आबिद रजा एवं धर्मेन्द्र यादव के बीच दरार मानी जा रही है, इस बदले राजनैतिक वातावरण का सलीम इकबाल शेरवानी लाभ लेना चाहते हैं, सो कांग्रेस के टिकट पर बदायूं लोकसभा क्षेत्र से दावेदारी ठोंक दी है पर, सिर्फ दावेदार बनने से कुछ नहीं होता। पुरानी टीम भी साथ आनी चाहिए, इसीलिए सलीम इकबाल शेरवानी अपने सर्वाधिक दमदार साथी आबिद रजा को लुभाने में जुट गये हैं।

सलीम इकबाल शेरवानी और आबिद रजा की मुलाकात की खबर तेजी से शहर में फैल गई और फिर लोग तमाम तरह के कयास लगाने लगे लेकिन, अभी मुलाकात के मायने सामने नहीं आये हैं। आने वाले चुनाव में आबिद रजा की क्या भूमिका रहेगी, इस बारे में अभी कुछ कह पाना कठिन है। हालाँकि वे स्वयं भी चुनाव लड़ने के दावेदार माने जाते हैं।

हाँ, इतना तय है कि आबिद रजा स्वयं चुनाव नहीं लड़े और सलीम इकबाल शेरवानी के साथ खड़े हो गये तो, वे वर्ष- 2009 में मिले वोटों की तुलना में ज्यादा वोट दिलवाने में सफल रहेंगे। आबिद रजा पिछले लंबे समय से मुस्लिम को राजनैतिक रूप से जागरूक करने का अभियान चला रहे हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी है।

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