अदूरदर्शी और अराजनैतिक निर्णय लेकर दीपू भैया ने घटा लिया स्वयं का कद, सपा को लाभ

अदूरदर्शी और अराजनैतिक निर्णय लेकर दीपू भैया ने घटा लिया स्वयं का कद, सपा को लाभ

बदायूं जिले की दातागंज विधान सभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधायक रह चुके सिनोद कुमार शाक्य “दीपू भैया” और आंवला लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी उनकी पत्नी सुनीता शाक्य ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही समाजवादी पार्टी ने सुनीता शाक्य को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया, यह दोनों ही कार्य अप्रत्याशित नहीं हैं, क्योंकि पिछले कई महीनों से राजनैतिक व्यक्ति ही नहीं बल्कि, गैर राजनैतिक व्यक्ति भी यह माने बैठे थे कि सिनोद कुमार शाक्य “दीपू भैया” समाजवादी पार्टी में जाने वाले हैं, यही बात आम होने के कारण बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था।

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सिनोद कुमार शाक्य “दीपू भैया” और उनकी पत्नी सुनीता शाक्य के समाजवादी पार्टी में जाने की घोषणा भर है यह, खबर नहीं है, क्योंकि ऐसा सबको पहले से ही पता था, इसीलिए कोई स्तब्ध नहीं है, इसीलिए कोई चर्चा नहीं है। दीपू भैया का युवा और ऊर्जावान नेता के रूप में बड़ा कद माना जाता रहा है, उनकी लोकप्रियता है, उस कद और उस लोकप्रियता को उन्होंने आज स्वयं ही कम कर लिया। दीपू भैया का कद जिला कार्यालय में समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने वाला नहीं है, उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव सदस्यता ग्रहण कराते तो, उनके समर्थकों को ज्यादा अच्छा लगता। हालाँकि धर्मेन्द्र यादव ने सदस्यता ग्रहण कराई, जो पार्टी के बड़े नेता हैं पर, स्वयं धर्मेन्द्र यादव ही जिले के तमाम नेताओं को लखनऊ ले जाकर अखिलेश यादव के समक्ष सदस्यता ग्रहण कराते रहे हैं। पूर्व विधायक, चेयरमैन और सभासद स्तर के लोगों को धर्मेन्द्र यादव ने ही लखनऊ ले जाकर सदस्यता दिलाई है। हाल ही में कॉंग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष और कस्बा सैदपुर के कुछ लोगों को सलीम इकबाल शेरवानी ने लखनऊ में अखिलेश यादव के समक्ष सदस्यता ग्रहण कराई थी, इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि पूर्व विधायक और पूर्व लोकसभा क्षेत्र की प्रत्याशी को उतनी अहमियत क्यों नहीं दी गई?

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असलियत में दीपू भैया के पास भी बहुत ज्यादा विकल्प थे नहीं। वे बसपा से निकाले जा चुके हैं। भाजपा में मौर्य जाति के तमाम बड़े नेता हैं, जिनके रहते उन्हें भाजपा में बड़ी भूमिका मिलना संभव नहीं थी, ऐसे में उनके पास समाजवादी पार्टी एक मात्र विकल्प बच रहा था, इस मजबूरी को समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को महसूस कर पाना कोई बड़ा काम नहीं होगा। समाजवादी पार्टी के समर्थन से तमाम जिला पंचायत सदस्य विजयी हुए हैं पर, उनके पास अध्यक्ष पद के कद का प्रत्याशी नहीं था, ऐसे में दीपू भैया ने पार्टी ज्वाइन कर समाजवादी पार्टी को ही ऊर्जा दी है मतलब, हाल-फिलहाल समाजवादी पार्टी का ही एकतरफा लाभ दिखाई दे रहा है, साथ ही दीपू भैया का कद कम होता नजर आ रहा है।

दीपू भैया को लेकर तमाम तरह की चर्चायें की जा रही हैं कि उन्हें ऐसा आश्वासन दिया गया होगा, उन्होंने ऐसा कहा होगा, उन्होंने वैसा माँगा होगा, वे इस शर्त पर गये होंगे, उनकी वो शर्त मानी गई होगी, यह नहीं मानी गई होगी, उन्हें भविष्य यह दिया जायेगा, इस पर यही कहा जा सकता है कि राजनीति संभावनाओं का क्षेत्र तो है पर, आंकलन आने वाले कल से नहीं किया जा सकता। वर्तमान से ही तुलना की जा सकती है और वर्तमान में यही कहा जा सकता है कि स्वयं को झोंक कर दीपू भैया ने समाजवादी पार्टी को ऊर्जा प्रदान कर दी है लेकिन, दीपू भैया का इस तरह सपा ज्वाइन करने का निर्णय अदूरदर्शी और अराजनैतिक ही कहा जायेगा।

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