बर्थ एस्फिक्शिया से पीड़ित बच्ची के रोते ही सभी झूम उठे

बर्थ एस्फिक्शिया से पीड़ित बच्ची के रोते ही सभी झूम उठे

बदायूं के स्वास्थ्य विभाग से भ्रष्टाचार और लापरवाही से संबंधित खबरें ही आती रहती हैं लेकिन, इस बार सराहना करने वाली खबर आ रही है। स्वास्थ्य विभाग ने बर्थ एस्फिक्शिया से पीड़ित गरीब परिवार के शिशु को बचाने में सफलता प्राप्त की है, जिससे शिशु का परिवार दिवाली सी खुशी मना रहा है।

बताते हैं कि विकास क्षेत्र जगत के गाँव ऐहरा मई की निवासी 24 वर्षीय लक्ष्मी संयुक्त परिवार में रहती है, आजीविका चलाने के लिए उसका पति राज कुमार बदायूं में ही काम करता है। लक्ष्मी को 24 जुलाई की सुबह प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो, परिजनों ने आशा बहू को बुलाया, जिसके बाद 102 एम्बुलेंस को भी सूचित किया गया, एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाई तो, सास प्रेमवती और ससुर प्रेमपाल लक्ष्मी को निजी साधन से जिला अस्पताल ले आये, जहाँ उसे भर्ती कर लिया गया। सामान्य डिलीवरी द्वारा लक्ष्मी ने एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन, बच्ची ने कोई हरकत नहीं की, वह बेजान थी, सांस भी नहीं ले पा रही थी, यह देख कर डॉक्टर ने बच्ची की दादी को सलाह दी कि वह तत्काल उसे जिला चिकित्सालय में ही स्थित स्पेशल न्यू नेटल केयर यूनिट ले जाये।

स्पेशल न्यू नेटल केयर यूनिट में उपस्थित स्टाफ नर्स मीनू और एकता ने तुरंत बच्ची को भर्ती किया, स्टाफ नर्स को यह समझने में देर नहीं लगी कि बच्ची बर्थ एस्फिक्शिया से पीड़ित है, बच्ची का रंग नीला पड़ चुका था, बच्ची की सांस टूट रही थी, साथ ही उसे झटके भी आने लगे थे, इस जटिल परिस्थिति को देखते हुए स्टाफ नर्स ने पहले बच्ची को रेडियंट वार्मर पर पुनर्जीवन की प्रकिया के लिए रखा, इसके बाद बच्ची का सेक्शन किया, बच्ची को कृतिम सांस भी दी गई, साथ ही मेडिसिन दी गई, एक घंटे की कड़ी मेहनत के बाद बच्ची की सांस वापस आ गई, फिर कृतिम ऑक्सीजन की जगह बच्ची स्वयं सांस लेने लगी, जिसके बाद बच्ची ने रोना प्रारंम्भ किया तो, सभी के चेहरे खिल उठे। बताते हैं कि बच्ची के परिवार की आर्थिक स्थिति निजी अस्पताल में उपचार कराने की नहीं है, जिससे पूरा परिवार सरकारी डॉक्टर और नर्स को दुआयें दे रहा है।

स्पेशल न्यू नेटल केयर यूनिट की नर्स मीनू ने बताया की बर्थ एस्फिक्शिया से ग्रसित बच्चे स्पेशल न्यू नेटल केयर यूनिट में ही भर्ती किये जाते है, नवजात शिशु सांस लेने के लिए जन्म के तुरंत बाद जोर से रोते हैं, अगर, ऐसा नहीं होता है तो, इसका मतलब है की बच्चा बर्थ एस्फिक्शिया से ग्रसित है। जिला अस्पताल के अंदर स्पेशल न्यू नेटल केयर यूनिट है, जिसमें 12 वार्मर है, जून 2017 से जुलाई 2018 तक 120 बच्चे भर्ती हुए हैं, जिसमें 57 बच्चे बर्थ एस्फिक्शिया से पीड़ित थे।

मीनू ने बताया कि प्रेगनेंसी के दौरान अगर, महिला ने लापरवाही बरती हो तो, जन्म लेने के समय बच्चे में एस्फिक्शिया होने की संभावना अधिक होती है, इसके अलावा माँ की कम उम्र में शादी हो जाना, बच्चा उल्टा पैदा हुआ होना, जुड़वाँ बच्चे होना और समय से पहले और बाद में जन्म लेने पर भी शिशु में एस्फिक्शिया होने की संभावना बढ़ जाती हैै।

स्टाफ नर्स एकता ने बताया की बर्थ एस्फिक्शिया से किसी भी नवजात की जान न जाने पाए, इसके लिए आवश्यक है कि प्रसव संस्थागत कराया जाए, गर्भावस्था के दौरान की जाने वाली सभी जांचें कराई जायें, साथ ही गर्भवस्था के दौरान गर्भवती महिला अपना विशेष ध्यान रखे, इस तरह नवजात शिशुओं को बर्थ एस्फिक्शिया से बचाया जा सकता हैै।

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