चिकित्सा जगत का माफिया देवमूर्ति फंसा

मरीज और मरीज का परिवार डाक्टर को भगवान की तरह ही सम्मान देता रहा है, लेकिन बरेली के एसआरएमएस और रुहेलखंड मेडीकल कॉलेज कुछ रुपयों के लालच में डाक्टर्स के रूप में मुन्ना भाईयों की ऐसी फौज तैयार कर रहे हैं, जो मरीज के प्राण बचाने की बजाये, मरीज के परिवार को लूटने का ही काम करेंगे। पढिय़े, गौतम संदेश की चौंकाने वाली सनसनीखेज रिपोर्ट . . .


बरेली शहर ने डेढ़-दो दशकों के अंदर चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक स्तर पर ख्याति प्राप्त की है, लेकिन देवमूर्ति उस ख्याति में बदनुमा दाग की तरह उभर कर सामने आ रहा है। अंदर ही अंदर मुन्ना भाई तैयार कर रहा है। सेटिंग और पॉवर का दुरुपयोग कर रुपये को डॉलर में तब्दील करने का खेल भी खेल रहा है। श्रीराम राममूर्ति स्मारक ट्रस्ट के अधीन चलने वाले मेडीकल कॉलेज के साथ रुहेलखंड मेडीकल कॉलेज सीबीआई के फंदे में फंस गये हैं। दोनों पर कार्रवाई की तैयारी चल रही है। सूत्रों का कहना है कि सीबीआई ने कुछ खास विंदुओं पर ही जांच की है। गड़बड़ी व्यापक स्तर पर है, जिसकी जांच और भी गहनता से होनी चाहिए।
श्रीराममूर्ति स्मारक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज के चेयरमैन देव मूर्ति का नाम चिकित्सा क्षेत्र में माफिया के रूप में कुख्यात हो चुका है। फिलहाल यह माफिया करोड़ों रुपये हड़पने के मामले में फंसता नजर आ रहा है, क्योंकि वित्तीय वर्ष 2००9-1० में षड्यंत्र और धोखाधड़ी कर मेडिकल कॉलेज को नवीनीकरण के लिए अनुमोदित कर करोड़ों रुपये हड़पने के मामले में आरोपी सिद्ध हो गया है। इसके साथ सीबीआई ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्ष केतन देसाई, अतिरिक्त इंस्पेक्टर डा. सुरेश चिमन लाल शाह, श्रीराममूर्ति स्मारक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज के निदेशक (प्रशासन) आदित्य मूर्ति, डीन वेद प्रकाश को 21 जुलाई को तलब किया है।
सीबीआई इस मामले में पांचों अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र पर संज्ञान ले चुकी है। अदालत में सीबीआई की ओर से कहा गया कि इस मामले में पांचों आरोपियों के विरुद्ध आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी एवं आपराधिक कदाचार के तहत 22 मई 2०1० को अभियोग पंजीकृत किया गया। आरोप है कि डा. केतन देसाई व डा. सुरेश चिमन लाल शाह ने लोक सेवक के पद पर रहते हुए अपराध को अंजाम दिया। डा. केतन देसाई मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद से हट चुके हैं एवं डा. सुरेश चिमन लाल शाह सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जिस कारण उनके विरुद्ध धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन स्वीकृति आवश्यक नहीं है। सीबीआई ने केतन देसाई एवं डा. सुरेश चिमन लाल शाह के विरुद्ध अंतर्गत धारा 12० बी सपठित धारा 42० बी सपठित धारा 42०, भारतीय दंड संहिता, 13(2) सपठित धारा की ओर से 13(1) (डी) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 और अभियुक्त देव मूर्ति, आदित्य मूर्ति व वेद प्रकाश के विरुद्ध अंतर्गत धारा 12० बी सपठित धारा 42०, 468, 471 भारतीय दंड संहिता 13(2) सपठित धारा 13 (1) (डी) भ्रष्टाचार निवारण के तहत लखनऊ की अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।


इसी तरह रुहेलखंड मेडीकल कॉलेज ने भी बरेली के दामन पर एक मोटा और काला धब्बा लगा दिया है। घटना वर्ष 2००8 की है। मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) ने रुहेलखंड कालेज, बरेली में एमबीबीएस की सौ सीटों की मान्यता रोक ली थी। पैसा और साख फंसने की स्थिति में प्रबंधन ने पॉवर का दुरुपयोग किया। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास से संपर्क किया और उनकी शर्तो पर मान्यता लेने की पेशकश की।
बताया जाता है कि स्वास्थ्य मंत्री ने कालेज के निरीक्षण के लिए मंत्रालय से एक केन्द्रीय टीम भेजी। इस टीम ने निरीक्षण किया और मान्यता की संस्तुति करने से इंकार कर दिया। इसके बाद कालेज प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या कालेज को पचास सीटों की मान्यता दी जा सकती है? इस पर एमसीआई ने स्पष्ट जवाब दिया कि यह कालेज पचास सीटों की मान्यता पाने की भी अर्हता नहीं रखता है। इसके बाद याचिका खारिज हो गयी, लेकिन कालेज प्रबंधन ने पुन: स्वास्थ्य मंत्री से संपर्क साधा और रामदास ने सेटिंग के बाद एक टीम बनाकर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के दो प्रोफेसरों को निरीक्षण के लिए फिर भेज दिया। उनकी रिपोर्ट को आधार बनाते हुए 48 घंटे के अंदर ही सारी औपचारिकतायें पूरी कर कालेज को मान्यता की संस्तुति प्रदान कर दी गयी।
स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि एमसीआई ने जिस कॉलेज को पचास सीटों के योग्य भी नहीं समझा, उसे मंत्रालय के निर्देश पर आई टीम ने 15० सीटों की मान्यता देने की सिफारिश कर दी और मान्यता मिल भी गयी। घालमेल का अब खुलासा हो चुका है। सीबीआई की जांच में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास और उनके मंत्रालय के दो अधिकारियों के अलावा सफदरगंज के दो प्रोफेसर, कालेज के चेयरमैन डाक्टर केशव कुमार अग्रवाल और वाइस चेयरमैन डाक्टर लता अग्रवाल समेत कई लोगों को संलिप्त पाया है। सीबीआई ने इन सभी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति मांगी है, जिसका सीबीआई को इंतजार है, लेकिन पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और कालेज प्रबंधन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने में कोई अड़चन नहीं है। निर्धारित अवधि के अंदर सरकारी कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति नहीं भी मिली, तो सीबीआई लखनऊ की विशेष अदालत में सभी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर सकती है।
सुरेश बनेगा सरकारी गवाह
निजी मेडिकल कालेजों को मान्यता देने के नाम पर रिश्वतखोरी का साम्राज्य चलाने वाले गैंग में से एक इंस्पेक्टर सुरेश शाह सरकारी गवाह बनने के लिए तैयार हो गया है, जो अदालत में सबके गुनाहों की पोल खोलेगा।
एसआरएमएस बरेली के फरवरी 2००9 में एमबीबीएस कोर्स के पांचवें बैच के औचक निरीक्षण में एमसीआई ने निरीक्षण में तमाम कमियां पाई। चार मई को पुन: जांच हुई तो और भी खामियां उजागर हुई, लेकिन 26 मई की जांच में एमसीआई को इस कालेज में कोई कमी नहीं मिली, जिसके आधार पर इस कालेज को मान्यता देने की संस्तुति कर दी गयी। सवाल उठने स्वभाविक थे, सो जांच में परतें खुलती चली गयीं। तीनों निरीक्षण टीम में इंस्पेक्टर सुरेश शाह शामिल था। पूछताछ में सीबीआई के सामने सुरेश शाह टूट गया और उसने सभी की करतूतों का खुलासा कर दिया। वह अब अदालत में भी सरकारी गवाह के रूप में सभी की पोल खोलेगा, जिससे धंधेबाजों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

काला धन सफेद करता है देवमूर्ति
राममूर्ति स्मारक ट्रस्ट का कर्ता-धर्ता देवमूर्ति काले धन को सफेद करने का भी काम करता है। सूत्रों का कहना है कि दस प्रतिशत रुपये लेकर ट्रस्ट को दान देने की रसीद जारी कर देता है। रुहेलखंड क्षेत्र के साथ दूर-दूर के काले धन के स्वामी एवं नौकरशाह इसके संपर्क में रहते हैं, जो आय कर से बचने के लिए राममूर्ति ट्रस्ट से फर्जी रसीद प्राप्त कर लेते हैं। ट्रस्ट आय कर अधिनियम एवं आरटीआई से मुक्त हैं, जिसका देवमूर्ति जमकर दुरुपयोग कर रहा है।

दवा चोरी के भी मामले प्रकाश में आये
एसआरएमएस में इलाज कराने वाले मरीजों की कीमती दवा भी चोरी की जाती है। मरीज की जान बचाने के लिए पीडि़त परिवार किसी तरह रुपयों का इंतजाम कर लाता है और महंगे से महंगा उपचार कराने में कोताही नहीं बरतता, पर सूत्रों का कहना है कि एसआरएमएस का स्टाफ रात में महंगी दवाओं की चोरी कर लेता है एवं उन दवाईयों को अस्पताल के अंदर ही बने सुविधा नाम के मेडीकल स्टोर पर पहुंचा दिया जाता है। रात में कई बार तीमारदार सो जाते हैं, जिससे उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके मरीज की दवा चोरी हो चुकी है। दवा शरीर के अंदर न पहुंचने के कारण मरीज की हालत और अधिक खराब होती जाती है या फिर कुछ दिनों की बीमारी महीनों में सही होती है, जिसके रहने का अतिरिक्त कर मरीज के परिवार पर ही पड़ता है। यही हाल आईसीयू का बताया जाता है। दवा चोरी के प्रकरण का खुलासा वर्ष 2००8 में हो चुका है, लेकिन एक कर्मचारी को हटा कर मामला दबा दिया गया था।

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