चिता मंजिल नहीं है जिंदगी की, यहाँ से रास्ता मोड़ा गया है: नरेंद्र गरल

चिता मंजिल नहीं है जिंदगी की, यहाँ से रास्ता मोड़ा गया है: नरेंद्र गरल

सुविख्यात कवि, गीतकार और गजलकार नरेंद्र गरल आध्यात्मिक रूचि के व्यक्ति हैं, सो उनकी रचनायें महानतम श्रेणी में रखी जा सकती हैं। पौराणिक घटनाओं का अपने अंदाज में उल्लेख कर श्रोताओं के अंदर तक घुस जाते हैं। नरेंद्र गरल की एक गजल ऐसी है, जिसे सुनने वाले वाह-वाह करना ही भूल जाते हैं।

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कहाँ लाकर मुझे छोड़ा गया है, सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

चिता मंजिल नहीं है जिंदगी की, यहाँ से रास्ता मोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

कहाँ लाकर मुझे छोड़ा गया है, सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

नई पीढ़ी वहीं पर रोकती है, जहाँ भी यज्ञ का घोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

कहाँ लाकर मुझे छोड़ा गया है, सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

धरा धंसती हुई सीता सीता पुकारे, इसी पल को धनुष तोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

कहाँ लाकर मुझे छोड़ा गया है, सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

सफर में फिर सफर जोड़ा गया है।

उक्त गजल का सुनने वालों पर कुछ ऐसा असर होता है कि एक टक देखते हुए अलग ही दुनियां में चले जाते हैं। विशेष कर सीता की मनोदशा का उल्लेख आते ही प्रत्येक श्रोता के सामने धनुष यज्ञ से लेकर वनवास और फिर सीता बनवास तक की कहानी पल भर में न सिर्फ उमड़-घुमड़ जाती है बल्कि, उस दर्द की अनुभूति होने लगती है, इसीलिए श्रोता सन्न रह जाते हैं।

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