मेरी बाँहों में झूलते थे जो, वे भी अब तमतमाये बैठे हैं: नरेंद्र गरल

मेरी बाँहों में झूलते थे जो, वे भी अब तमतमाये बैठे हैं: नरेंद्र गरल

नरेंद्र गरल स्वयं में साहित्य का चलता-फिरता ग्रंथ हैं। साहित्य की हर विधा में पारंगत हैं, साथ ही लिखते हुए और मंच पर काव्य पाठ करते हुए उन्हें लंबा समय हो गया है। अनुभव के चलते उनकी रचनायें और गूढ़ हो गई हैं, सरल भी हो गई हैं, जिससे उन्हें सुनते हुए श्रोता अब वाह-वाह करना ही भूल जाते हैं।

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गौतम संदेश में प्रसिद्ध कवि, गीतकार और गजलकार नरेंद्र गरल की रचनायें प्रत्येक शुक्रवार को प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया था लेकिन, उनकी ऐसी-ऐसी रचनायें सामने आ रही हैं कि शुक्रवार तक पाठकों को इंतजार कराना अन्याय करने जैसा प्रतीत हुआ, सो उनकी एक ताजा गजल आज ही प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं, सब जहाँ आजमाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

चल के आने का काम तेरा है, हम तो धूनी रमाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं, तेरे रंग में समाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

इस फकीरी में कुछ कमी ही नहीं, इतनी पूँजी कमाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

कह-कहों का यह दौर जारी है, रंज महफिल जमाए बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

तूने जिस पर भी धूल फेंकी थी, देख ले चमचमाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं…

मेरी बाँहों में झूलते थे जो, वे भी अब तमतमाये बैठे हैं।

सब जहाँ आजमाये बैठे हैं, सब जहाँ आजमाये बैठे हैं।

चल के आने का काम तेरा है, हम तो धूनी रमाये बैठे हैं।

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