अगले चुनाव में शिवपाल यादव के पास होंगे सबसे मजबूत योद्धा

मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन 4 अक्टूबर 1992 को किया था, इसके प्रचार-प्रसार और मजबूत संगठन बनाने में हजारों लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिवपाल सिंह यादव के योगदान की बात करें तो, उनके संघर्ष और सेवा को समाजवादी पार्टी के इतिहास से कोई मिटा नहीं सकता। समाजवादी पार्टी वर्तमान में सत्ता में नहीं है, फिर भी समाजवादी पार्टी का स्वर्णिम युग ही कहा जायेगा, क्योंकि समाजवादी पार्टी के पास बेहद मजबूत संगठन है, जिसमें बलिदान देने को तत्पर लाखों युवा हैं, इस संगठन के बल पर समाजवादी कार्यकर्ताओं का भी शोषण कोई नहीं कर सकता लेकिन, समाजवादी पार्टी हमेशा इतनी शक्तिशाली नहीं थी। एक दौर ऐसा भी था जब, मुलायम सिंह यादव की ही जान पर खतरा मंडराता रहता था, परंपरागत राजनीति करने वाले लोग संघर्ष करने वाले जमीनी नेता मुलायम सिंह यादव को ही समाप्त कर देना चाहते थे, उस दौर में शिवपाल सिंह यादव बिल्कुल लक्ष्मण की ही तरह रात-दिन जाग कर मुलायम सिंह यादव की सेवा और सुरक्षा में तैनात रहते थे, उन हालातों की आज के युवा सटीक कल्पना भी नहीं कर सकते, इसलिए वे शिवपाल सिंह यादव की भूमिका की भी अनुभूति नहीं कर सकते।

खैर, दौर बदला, हालात बदले, शिवपाल सिंह यादव अपने मन में अखिलेश यादव को भतीजा ही समझते रहे, उन्हें यही लगता रहा कि अखिलेश यादव उनके सामने बोल भी नहीं सकते, उनके ध्यान में यह बात रही ही नहीं कि अखिलेश यादव भतीजे के साथ जवान हो गये हैं, मुख्यमंत्री भी बन गये हैं, संगठन पर मजबूत पकड़ बना ली है, यह सब होने पर पिछली पीढ़ी से हर अगली पीढ़ी का टकराव होता है, कुछेक के बीच संवाद समाप्त हो जाता है, कुछेक के बीच नोंक-झोंक होती रहती है और कुछेक के मध्य बीच सड़क पर लाठी चल जाती है। पिछली पीढ़ी तन, मन और धन से क्षीण हो गई हो तो, वह अगली पीढ़ी के आगे हथियार डाल देती है लेकिन, पिछली पीढ़ी भी मजबूत अवस्था में हो तो, टकराव हो जाता है। तन और मन से कमजोर होने के चलते मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव से संघर्ष नहीं कर पाये, उन्हें गम के साथ यह खुशी भी होगी कि बेटे से ही हारे हैं लेकिन, शिवपाल सिंह यादव ऊर्जावान हैं, वे टकरा गये अथवा, अखिलेश यादव उनसे टकरा गये, दोनों के बीच से सम्मान, प्रेम और आत्मीयता का भाव शून्य हो गया, दोनों के बीच वही रिश्ता कायम करने के प्रयास होते रहे पर, इतना सब हो जाने के बाद पुनः बराबर में बैठ पाना संभव नहीं हो पाता। अगर, दोनों के बीच समझौता हो भी जाता तो, हर दिन शिवपाल सिंह यादव का स्वाभिमान घायल होता। अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, इस सच को स्वीकारना शिवपाल सिंह यादव के लिए कठिन होता, वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से शिवपाल सिंह यादव को विशेष सम्मान दे पाना, अखिलेश यादव के लिए आसान नहीं होता। जिस पार्टी के सर्वे-सर्वा रहे हों, उस पार्टी में कार्यकर्ता बनाने की और किसी कार्यकर्ता के विरुद्ध कार्रवाई न कर पाने के अधिकार के बिना शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी में रह भी नहीं पाते।

हालातों के अनुरूप बहते हुए शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेकुलर मोर्चे का गठन कर लिया, जिसकी 29 अगस्त को घोषणा कर दी, इसे समाजवादी पार्टी के समर्थक भारतीय जनता पार्टी का षड्यंत्र करार देते नजर आये। अखिलेश यादव का बयान भी कुछ इस तरह का ही था। भाजपा से मिलीभगत न होने की शिवपाल सिंह यादव अग्नि परीक्षा भी दे दें, तो भी अखिलेश यादव और उनके समर्थक स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए इस विषय पर चर्चा करना ही निरर्थक है, जबकि हालात ऐसे थे, जिनके चलते शिवपाल सिंह यादव मोर्चा बनाने को मजबूर हुए, यही बड़ा सच है और इसे ही स्वीकार करना चाहिए।

बीपी गौतम

अब बात करते हैं कि शिवपाल सिंह यादव के मोर्चे की और उनकी लोकसभा चुनाव में भूमिका की तो, शिवपाल सिंह यादव और उनका मोर्चा अगले चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है। शिवपाल सिंह यादव की पहुंच प्रदेश भर में है, इसलिए संगठन का निर्माण करने में उन्हें बहुत ज्यादा समस्या नहीं होगी पर, उनका मोर्चा संगठन के बल पर आगे नहीं बढ़ेगा, उनके मोर्चे को हालात आगे बढ़ायेंगे। देश और प्रदेश के राजनैतिक हालात शिवपाल सिंह यादव को बड़ा लाभ पहुंचा सकते हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध महागठबंधन बन रहा है। महागठबंधन सफल हुआ तो, स्पष्ट है कि समाजवादी पार्टी 34-40 सीटों पर प्रत्याशी उतार सकेगी, बहुजन समाज पार्टी भी 34-40 सीटों पर लड़ सकेगी एवं कांग्रेस 10-12 सीटों पर प्रत्याशी उतार सकेगी मतलब, हर लोकसभा क्षेत्र में किसी न किसी दल का मजबूत प्रत्याशी चुनाव लड़ने से वंचित रह जायेगा, उस अवस्था का लाभ सिर्फ और सिर्फ शिवपाल सिंह यादव को ही मिलेगा, वे टिकट से वंचित रह गये दो प्रत्याशियों में से एक मजबूत व्यक्ति को चुनेंगे और 2019 के महाभारत का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जायेंगे, उस अवस्था में उन्हें दोहरी सहानुभूति मिल सकती है। अखिलेश यादव द्वारा ठुकराये गये शिवपाल सिंह यादव को सहानुभूति मिलेगी, वहीं उनके मोर्चे से टिकट पाने वाले प्रत्याशी को भी सहानुभूति मिलेगी। सहानुभूति की लहर में भाजपा सरकार के विरुद्ध आरक्षण और एससी/एसटी एक्ट के विरोध में नोटा दबाने का आह्वान करने वाला समूह भी शिवपाल सिंह यादव को समर्थन दे सकता है, ऐसे राजनैतिक वातावरण में शिवपाल सिंह यादव के मोर्चे के योद्धा हर क्षेत्र में मुख्य लड़ाई लड़ते नजर आ रहे होंगे। शिवपाल सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी को आंशिक और महागठबंधन को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसका तोड़ भी हाल-फिलहाल महागठबंधन के पास नहीं है। शिवपाल सिंह यादव के भय से महागठबंधन नहीं बना तो, इसका सबसे बड़ा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा, उस हालात में भी शिवपाल सिंह यादव का कोई नुकसान नहीं होगा।

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