डॉक्टर और सरकार पहले से तय कर ही नहीं सकते कि कितनी ऑक्सीजन चाहिए

डॉक्टर और सरकार पहले से तय कर ही नहीं सकते कि कितनी ऑक्सीजन चाहिए

बीपी गौतम

व्यक्ति को किसी भी बीमारी के कारण साँस लेने में समस्या होने लगती है तो, उसे कृतिम ऑक्सीजन देना पड़ती है। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की हालत गंभीर होती जाती है तो, उसे भी कृतिम ऑक्सीजन देना पड़ती है। कोरोना वायरस फेफड़ों पर ही आक्रमण करता है, जिससे कृतिम ऑक्सीजन की मांग बढ़ गई है। अचानक मांग बढ़ने से और कृतिम ऑक्सीजन कम होने की बात फैलने से हाहाकार मच गया है। कृतिम ऑक्सीजन की कमी को लेकर अधिकांश लोग डॉक्टर्स को कोस कर रहे हैं, व्यवस्था के साथ सरकार की भी आलोचना और निंदा कर रहे हैं।

कोरोना वायरस का होना ही दुःखद है, इससे हो रही मौतें और भी दुःखद हैं लेकिन, माहमारी जिस स्तर से फैली है, उसे देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि इंसानी शक्ति से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है, जिसे त्वरित काबू कर पाना संभव ही नहीं है, इस माहमारी को लेकर बनाये गये नियमों का पालन करने से और वैक्सीन लगवाने से ही सुरक्षित रहा जा रहा है। फिलहाल देश भर में कोरोना वायरस से ज्यादा चर्चा कृतिम ऑक्सीजन को लेकर है, इसलिए कृतिम ऑक्सीजन की ही बात करते हैं।

ऑक्सीजन दो तरह की होती है। औद्योगिक कार्यों में प्रयोग होने वाली ऑक्सीजन अलग होती है, इस ऑक्सीजन को 93 प्रतिशत और शुद्ध किया जाता है, उसके बाद उसे मेडिकल ऑक्सीजन नाम दिया जाता है, फिर मेडिकल ऑक्सीजन को कृत्रिम रूप से मनुष्य को दिया जा सकता है। किसे कितनी कृतिम ऑक्सीजन दी जाती है, इसका कोई तय पैमाना नहीं है, यह व्यक्ति की बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियों की बात करें तो, बमुश्किल 8-10 प्रतिशत मरीजों को ही कृतिम ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।

स्वस्थ व्यक्ति सामान्य अवस्था में प्रति मिनट 7-8 लीटर हवा लेता है। प्रत्येक व्यक्ति को 24 घंटे में 11,000 लीटर हवा की जरूरत पड़ती है। वातावरण में मात्र 20-21 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है। व्यक्ति ऑक्सीजन अंदर खींचने के बाद 15-16 प्रतिशत ऑक्सीजन बाहर निकाल देता है। स्वस्थ और वयस्क व्यक्ति के फेफड़े 5-6 प्रतिशत ऑक्सीजन सोख लेते हैं। जब फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं तो, वे ऑक्सीजन सोखना बंद कर देते हैं, इस अवस्था में कृतिम ऑक्सीजन देना पड़ती है।

अब सवाल उठता है कि ऑक्सीजन का स्तर कैसे देखा जाये? इसको लेकर भी भ्रांतियां हैं। ऑक्सीजन स्तर देखने से पहले व्यक्ति को 6-7 मिनट पैदल टहलना चाहिए, इसके बाद ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन स्तर देखना चाहिए वरना, आराम से बैठे व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर 93-94 के आस-पास ही आयेगा, यह देख कर ऑक्सीजन स्तर कम होने का डर अंदर जाकर बैठ जाता है और फिर बीमार होने की अनुभूति होने लगती है। पैदल चलने के बाद भी ऑक्सीजन स्तर कम है तो, तत्काल डॉक्टर से बात करना चाहिए, इसके अलावा पैदल चलने की अवस्था ही न हो अथवा, पैदल चलने में ही सांस फूल रही हो तो भी तत्काल डॉक्टर के संपर्क में चले जाना चाहिए।

अब बात करते हैं ऑक्सीजन की खपत की तो, यह बीमारी की गंभीरता पर ही निर्भर करता है। सामान्यतः बीमार व्यक्ति को प्रति मिनट 1 से 2 लीटर मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। गंभीर हालत में 3 से 4 लीटर प्रति मिनट कृतिम ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। हालत और अधिक गंभीर हो तो, उसे हाई फ्लो नेजल कैनुला (एचएफएनसी) लगाया जाता है, जो 60 लीटर प्रति मिनट अथवा, 3,600 लीटर प्रति घंटे तक ऑक्सीजन खफाता है, इस तरह के मरीज एक दिन में 86,000 लीटर तक ऑक्सीजन खफा जाते हैं, ऐसे मरीज को फाई फ्लो नेजल कैनुला की जगह सिलेंडर से ही कृतिम ऑक्सीजन दी जाये तो, वह एक सिलेंडर 4 घंटे में समाप्त कर देगा, इसीलिए कोई भी डॉक्टर यह पहले से नहीं बता सकता कि उसे कितनी कृतिम ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ेगी।

मान लीजिये कि किसी अस्पताल में भर्ती मरीजों की हालत गंभीर नहीं है, ऐसी अवस्था में कृतिम ऑक्सीजन की भी खपत बेहद कम होगी लेकिन, उन भर्ती मरीजों में से दो मरीजों की भी हालत गंभीर हो जाये तो, कृतिम ऑक्सीजन की खपत इतना बढ़ जायेगी कि दो गंभीर मरीज अन्य भर्ती सामान्य मरीजों के हिस्से की भी कृतिम ऑक्सीजन खत्म कर के उन्हें भी गंभीर हालत में पहुंचा सकते हैं, ऐसी अवस्था में डॉक्टर को बेहद सोच-समझ कर निर्णय लेना होता है, इस अवस्था से बचने के हाल-फिलहाल दो ही विकल्प हैं। मास्क लगायें, सोशल डिस्टेंस के साथ अन्य सभी नियमों का पालन करें और अवसर मिलते ही वैक्सीन लगवा लें।

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