उसके अब हैं दोस्त बहुत, कारण, उसकी शोहरत है: सोनरूपा

उसके अब हैं दोस्त बहुत, कारण, उसकी शोहरत है: सोनरूपा

बदायूं का कोई न कोई साहित्यकार साहित्य के विशाल आसमान में ध्रुव तारे की तरह चमकता ही रहता है। साहित्यिक दृष्टि से बदायूं की भूमि बेहद उपजाऊ मानी जाती है, यहाँ बिखरे बीज समानुकूल ऋतू आते ही अंकुरित हो उठते हैं। बीज में सबसे अच्छी बात यही होती है कि चाहे जितने गहरे में दबा दिया जाये, वह नष्ट नहीं होता, वह समय का इंतजार धैर्य पूर्वक करता रहता है और एक दिन धरती को चीर कर बाहर आ ही जाता है, फिर वह छाया, फल, लकड़ी एवं ऑक्सीजन से समूचे ब्रह्मांड को ही लाभान्वित करने लगता है, ऐसा ही सोनरूपा नाम का एक बीज कई वर्ष पहले अंकुरित हो चुका है, जिसकी सुगंध सात समंदर पार तक पहुंच गई है। साहित्य जगत के पितामह भीष्म सोनरूपा में संभावनाओं के विशाल स्वरूप की अभी से अनुभूति करते दिखाई दे रहे हैं।

पढ़ें: डॉ. सोनरूपा अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा अमेरिका में आमंत्रित

साहित्य के संसार में सोनरूपा का नाम अब जहां तक हिंदी पढ़ी और समझी जाती है, वहां तक फैल चुका है। बदायूं में स्थित प्रोफेसर कॉलोनी में रहने वाली सोनरूपा सुविख्यात गीतकार और कवि डॉ. उर्मिलेश शंखधार की बेटी हैं। उन्होंने एम.ए (संगीत) आगरा विश्वविद्यालय से, एम.ए (हिंदी) के साथ पीएचडी एमजेपी रूहेलखंड विश्वविद्यालय- बरेली से एवं प्रयाग संगीत समिति- इलाहाबाद से संगीत प्रभाकर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है, उन्हें साहित्य की समझ पिता के कारण रक्त में ही मिली है। सोनरूपा ने लेखन तो बहुत पहले ही शुरू कर दिया था लेकिन, मंच पर वे देर से आईं और जब आईं तो, हर दिन एक कदम आगे ही बढ़ता चला गया।

सोनरूपा दिल्ली दूरदर्शन और लखनऊ एवं बरेली स्थित आकाशवाणी केन्द्रों के साथ अन्य तमाम निजी चैनलों पर काव्य पाठ करती रहती हैं। तमाम प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनायें प्रकाशित होती रहती हैं, उन्हें कई सारे पुरस्कार मिल चुके हैं। सोनरूपा पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा कही जाती है तभी, वे जितना अच्छा लिखती हैं, उतना ही अच्छा उन्हें स्वर मिला हुआ है। स्वर्गीय पिता डॉ. उर्मिलेश शंखधार की रचनाओं को आवाज दे चुकी हैं, जिसकी सीडी बेहद पसंद की गई।

सोनरूपा का “लिखना जरूरी है” नाम का गजल और नज़्म का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। दिल्ली के प्रख्यात हिंद युग्म ने वर्ष- 2014 में संग्रह प्रकाशित किया था, जिसमें 96 रचनायें हैं। पहली किताब साहित्य जगत में पहली कक्षा के विद्यार्थी की तरह ही मानी जाती है लेकिन, पहली किताब ने ही सोनरूपा को एक गंभीर व्यक्तित्व के रूप में स्थापित कर दिया। संग्रह में प्रकाशित कई ऐसी रचनायें हैं, जो बड़े अनुभव के बाद ही लिखी जा सकती हैं।

सोनरूपा ने पेज नंबर- 45 पर लिखा है कि …

अश्क, हसरत, नाउमीदी, बेख़ुदी, शिकवे, गिले

छोड़िये सब, आम कीजे मुस्कराते हुए सिलसिले

वज़्न जबसे सांस का खुद से जियादा हो गया

खुद को भूले जिन्दगी से हो गये शिकवे-गिले

रास्ते में साया देते सौ शजर मिल जायेंगे

साये में इनके सुकूं शायद ही घर जैसा मिले

जिन्दगी में जब कभी महसूस हों मायूसियाँ

खत्म करना अज्म से मायूसियों के सिलसिले

जब बुलंदी पर पहुंचने की हमें आदत हुई

और पस्ती की तरफ ले जाते पल हमको मिले

पेज नंबर- 51 पर बहुत ही साधारण सी पंक्तियाँ हैं लेकिन, पढ़ते समय लगेगा कि जैसे कोई तस्वीर बन रही है …

अच्छी खासी सोहबत है

फिर भी हम पर तोहमत है

उसके अब हैं दोस्त बहुत

कारण, उसकी शोहरत है

जी लो अपनी मर्जी से

जब तक सांस है मोहलत है

चैन नहीं हासिल उसको

हासिल जिसको दौलत है

तन्हाई का आलम है

गुरबत की ये नेमत है

इसी तरह उनकी रचना “कालीन”, “मेरे लॉन के फूल”, “समपर्ण”, “शिकायत”, “कशमकश” और “अल्हड़ लड़की का चाँद” भी प्रसंसनीय हैं, वे फिलहाल अमेरिकी यात्रा पर संस्मरण लिख रही हैं, जिसकी प्रतीक्षा पाठकों के साथ साहित्यकारों को भी है। अमेरिकी यात्रा के चलते वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य जगत में चर्चाओं के केंद्र में आ गई थीं।

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