सोनरूपा की पवित्र साहित्यिक गंगा को आचमन करने की जगह प्रदूषित कर गये संतोष आनंद

सोनरूपा की पवित्र साहित्यिक गंगा को आचमन करने की जगह प्रदूषित कर गये संतोष आनंद

कवि और लेखक बनने की अभिलाषा हर मन के अंदर रहती है। जिसके पास भाव हैं, विचार हैं, उसका मन भावों और विचारों को शब्दों में उतारने का भी करता है, फिर भी हर व्यक्ति कवि और लेखक नहीं बन सकता, क्योंकि कवि और लेखक चाहने से नहीं बन सकते। कवि और लेखक ईश्वरीय कृपा से बनते हैं, उस डीएनए से बनते हैं, जो प्राकृतिक तरीके से जन्म से ही मिलता है। कवि और लेखक भी कम नहीं हैं। बहुत सारे लोग हैं, जिन पर ईश्वर की कृपा बरसी है और बरस रही है लेकिन, अधिकांश लोग लिखने तक ही सीमित रहते हैं। बहुत कम लोग हैं, जो शब्द और सृजक के लिए भी ईश्वर सी आस्था-श्रद्धा रखते हों। वर्तमान दौर स्वयं की ब्रांडिंग करने का ही चल रहा है, इस दौर में स्थापित कवि और लेखक गुजरे दौर के कवियों और लेखकों को बहुत अधिक भाव देते नजर नहीं आते, साथ ही भविष्य के कवियों और लेखकों का सहारा बनना भी पसंद नहीं करते, ऐसे स्वार्थ से लबा-लब भरे दौर में प्रसिद्ध कवियत्री सोनरूपा विशाल ने फूहड़ता से जूझ रही कविता को मूल स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से कविता रूपी यज्ञ का आह्वान किया और उसमें आहुति प्रदान करने के लिए स-शक्त हस्ताक्षरों को आमंत्रित किया।

सोनरूपा को स्वयं की पहचान कराने के लिए इतना ही काफी है कि वे प्रसिद्ध कवि व गीतकार डॉ. उर्मिलेश शंखधार की बेटी हैं लेकिन, ऐसा कहना उनके साथ ना-इंसाफी होगी, क्योंकि देश में ही नहीं बल्कि, दुनिया भर में कवियत्री के रूप में सोनरूपा विशाल ने स्वयं की मेहनत से पहचान बनाई है। कहीं-कहीं तो ऐसा भी है कि लोग यह तक कहने लगे हैं कि डॉ. उर्मिलेश सोनरूपा के पिता थे, ऐसी प्रसिद्धि सोनरूपा को निश्चित ही गौरवान्वित करती होगी और कहीं से निहार रहे होंगे तो, डॉ. उर्मिलेश शंखधार भी हर्षित ही होते होंगे, ऐसा लिखने का आशय यह था कि सोनरूपा विशाल के लिए अब स्वयं की पहचान बनाने को लेकर कोई चिंता नहीं है, उन्हें आर्थिक समस्याओं की भी चिंता नहीं है, वे दोनों ही मोर्चों पर सफल कही जा सकती हैं। हालाँकि सफलता का कोई तय पैमाना नहीं होता, इस दृष्टि से उन्हें भी अभी बहुत लंबी यात्रा तय करनी है।

कुल मिला कर सोनरूपा विशाल ने रविवार की रात में साहित्य रूपी गंगा को आचमन करने का मन इसीलिए बनाया था कि वे व्यक्तिगत रूप से साहित्यिक गंगा की गंदगी को लेकर आहत रही होंगी। साहित्यिक गंगा को शुद्ध करने के उद्देश्य से ही उन्होंने डॉ. शिवओम “अंबर”, नरेंद्र गरल, गजेन्द्र प्रियांशु, संध्या सिंह, रश्मि शाक्य और चराग शर्मा को आमंत्रित किया था। पिछले कुछ दिनों से एक वायरल वीडियो से देश भर में यह संदेश भी गया कि प्रसिद्ध गीतकार संतोष आनंद बीमार हैं और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, इस साहित्यिक यज्ञ में सोनरूपा ने संतोष आनंद को गीतों का ऋषि मान कर इस उद्देश्य से आमंत्रित किया होगा कि वृद्धावस्था के दंश से जूझ रहे संतोष आनंद को अच्छा मंच मिल जायेगा, जिससे उन्हें सुखानुभूति होगी, साथ ही उनका आर्थिक सहायता प्रदान करने का भी मन रहा होगा तभी, उन्होंने संतोष आनंद को 51 हजार रूपये भी भेंट किये पर, लगता है कि शायद, सोनरूपा संतोष आनंद के स्टंट को समझ नहीं पाईं, क्योंकि संतोष आनंद सोनरूपा के प्रति कृतज्ञ दिखाई नहीं दिए, वे अहंकार के सर्वोच्च पायदान पर बैठे दिखाई दे रहे थे।

सोनरूपा विशाल ने एक लग्जरी निजी होटल के हॉल में शानदार आयोजन किया था, जहाँ मुख्य अतिथि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संकल्प शर्मा ने पालिकाध्यक्ष दीपमाला गोयल, भाजपा के महामंत्री पंडित शारदाकांत “सीकू भैया” सहित अन्य तमाम अतिथियों के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर दिया। अतिथि और कविगण मंचासीन हो गये। कार्यक्रम का संचालन कर रहे डॉ. अक्षत अशेष ने कवि सम्मेलन का संचालन करने के लिए माइक डॉ. शिवओम “अंबर” को सौंप दिया, इसके बाद संतोष आनंद व्हील चेयर पर आये और आते ही अफरा-तफरी का माहौल बना दिया, वे मंच पर न जाकर अपनी व्हील चेयर को श्रोताओं के बीच ले गये, जिससे काफी देर तक कार्यक्रम में अवरोध सा रहा।

श्रोताओं के बीच भ्रमण कर संतोष आनंद मंच पर पहुंचे तो, डॉ. शिवओम “अंबर” ने पुनः भूमिका बनाना शुरू कर दी, वे दो-चार वाक्य ही बोल पाये तभी, संतोष आनंद भड़क गये, वे वृद्ध कवि डॉ. शिवओम “अंबर” से कहने लगे कि तू सिर्फ मेरा गुणगान कर, हटाओ इसे, यह बदतमीज है वगैरह-वगैरह, ऐसी गालियाँ भी देने लगे, जो यहाँ लिख पाना संभव नहीं हैं, इस सब के बीच अस्वस्थ संतोष आनंद ने बड़ी मुश्किल ने पीछे घूम कर बैनर को भी निहारा। शायद, यह जानने का प्रयास किया जा रहा था कि कार्यक्रम उनको समर्पित है या, नहीं? बैनर पर सबसे बड़ा चित्र संतोष आनंद का लगा था, जिसे देख पर उन्हें संभवतः अच्छा लगा तभी, इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।

गाली-गलौच और हंगामा करने के बाद संतोष आनंद ने अपने फिल्मी गीतों की कुछ पंक्तियों के सहारे हॉल में पुनः हंगामा कराया, जिसके बाद वे मंच से चले गये। सबसे वृद्ध संतोष आनंद सबसे पहले पढ़ कर चले गये, जिससे संचालक डॉ. शिवओम “अंबर” ने भी पहली बार मंच की परंपरा को तोड़ दिया और उनके बाद नरेंद्र गरल से कविता पाठ कराया। खैर, बाद में सब कुछ सही रहा। उपस्थित श्रोताओं ने कविता, गीत, गजल और शायरियों का जमकर आनंद लिया और कवियत्री सोनरूपा विशाल के प्रयासों को भी दिल से सराहा।

असलियत में मनुष्य की प्रथम इच्छा जीवित रहने की होती है। जीवित रहने का क्रम बन जाये तो, दूसरी इच्छा भूख का प्रबंध करने की होती है। तीसरी इच्छा कपड़ा और साधन पाने की होती है, जो ऐश्वर्य-वैभव तक ले जाती है। चौथी इच्छा मान-सम्मान पाने की होती है, यह सब मिल जाये तो व्यक्ति की अंतिम इच्छा होती है महापुरुष बनने की। ऐसा कुछ हो जाये कि लोग मुझे जीवित रहते हुए ही महान मानने लगें और मृत्यु के बाद भी सदियों तक, प्रलय तक न सिर्फ याद रखें बल्कि, मेरे प्रति कृतज्ञ रहें। महान बनने वाली भूख कई बार मनुष्य भी रहने देती। जीवन भर जो कमाया होता है, वह भी चला जाता है।

हाल-फिलहाल के वर्षों में लाल कृष्ण आडवाणी उत्कृष्ट उदाहरण कहे जा सकते हैं, वे हिंदुओं के कट्टरपंथी नेता कहे जाते थे, इसी को लेकर वे हिंदुओं में लोकप्रिय थे, विपक्षियों में कुख्यात थे लेकिन, उनके अंदर उदारवादी नेता बनने की इच्छा जागृत हो गई, उनके अंदर न सिर्फ हिंदुओं बल्कि, सबके हृदय में जगह बनाने की ललक पैदा हो गई, ऐसा महान बनने की अंतिम इच्छा के कारण ही हुआ तभी, उन्होंने जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ा दी, जिसका उनके ही प्रशंसकों ने प्रंचड विरोध किया और वे झटके में राजनीति के हाशिये पर चले गये, इस एक घटना से वे देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाये।

संतोष आनंद भी महान बनने के फेर में आज कल ऐसी हरकतें कर रहे हैं कि उनके प्रशसंक ही उनकी निंदा करने को मजबूर हो जायेंगे। उम्र के इस पड़ाव पर सामान्य व्यक्ति भी वैरागी हो जाता है। संतोष आनंद विद्वान् व्यक्ति हैं, उन्हें धन अर्जित करने की लालसा के लिए स्टंट नहीं करना चाहिए और अगर, कोई मदद कर रहा है तो, उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। चूंकि उन्हें वास्तव में धन की आवश्यकता है नहीं, सो वे कृतज्ञ हो ही नहीं सकते, इसीलिए अहंकार सातवें आसमान पर है। सोनरूपा ने जिस मन से साहित्यिक यज्ञ का आयोजन किया था, उस मन की संतोष आनंद ने अनुभूति नहीं की वरना, वे ऐसी निंदनीय हरकतें कदापि नहीं करते। रविवार को संतोष आनंद ने जो किया, वह भुलाने लायक नहीं है। बस, यह कह कर स्वयं के मन को संतोष दिया जा सकता है कि संतोष आनंद सठिया गये हैं, उनकी हरकतों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।

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