अपने जीवन में झांक लो कि कितनी औरतों को तबाह किया: गीता

अपने जीवन में झांक लो कि कितनी औरतों को तबाह किया: गीता

दैनिक जागरण ने हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘हिंदी हैं हम’ के अंतर्गत 21 व 22 अप्रैल को दो दिवसीय कार्यक्रम “बिहार संवादी” का आयोजन किया। कठुआ कांड की खबर को लेकर दैनिक जागरण के आयोजन का कवियों, लेखकों, रंगमंच के कलाकारों और पत्रकारों ने बहिष्कार कर दिया, साथ ही तमाम लोगों ने तीखी आलोचना की एवं कुछेक ने तो आलोचना की भी हदें पार कर दीं। आलोचना के स्तर को लेकर भी चर्चायें की जा रही हैं, इस क्रम में लेखिका गीता श्री की प्रतिक्रिया बेहद सराही जा रही है।

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार गीता श्री ने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि वे भी दैनिक जागरण में छपी खबर की निंदा करती है लेकिन, मंच का बहिष्कार करती तो, जहां अपनी बात पहुंचाना चाहती थी, वहां तक कैसे पहुंचा पाती?

मुक्तांगन पर सवाल उठाने से पहले अपने चेहरे को आइना दिखायें और अपने मंसूबे और कुंठा को धूप दिखायें, कुछ राहत मिलेगी। मुक्तांगन ने अब तक जितने कार्यक्रम किये, उसमें कमी निकालिये, उसके वक्ताओ के बयानों से सहमति, असहमति जताइये, उस जगह को कोसने और उसके बारे में अभद्र भाषा का प्रयोग कर के लोग अपने कु-संस्कारों का परिचय दे रहे हैं।

सौ चूहे खा के जब बिल्ली हज को जाती है तो, भरोसा उठ जाता है। दिल्ली के एक कोने में एक कलात्मक जगह है मुक्तांगन, जहां खुली बहसें हुआ करती हैं जहां, उसके आयोजक का कोई दबाव नहीं होता। इतनी बात तो वहां शामिल हो चुके सारे वक्ता जानते हैं।

एक तरफ मीडिया में साहित्य के लिए जगह की कमी का रोना रोते हैं, दूसरी तरफ साहित्य को एक जगह मिलती है, माहौल मिलता है, उस पर हम ऊँगली उठाने लगते हैं। गिरने का भी एक स्तर होता है। हम उस स्तर से भी नीचे गिर चुके! हमारी आत्मा देह में नहीं, पीपल के पेड़ पर लटक गई है। किसी कर्ता के इंतजार में पिपासु आत्मायें…

मैं किस मंच पर जाऊं, वहां क्या बोलूं, न बोलूं, ये मेरा फैसला। मुझे फर्जी क्रांतिकारी डिक्टेट नहीं कर सकते। तीन चार दिन से कोशिशें हो रही थीं दबाव बनाने की। मैं किसी के दबाव में नहीं आती। दबाव में वे लोग आते हैं, जो अपने अलावा सबकी सुनते हैं।

दैनिक जागरण के संवादी मंच से मैंने कठुआ वाली खबर पर प्रतिरोध जताया और अपनी तकलीफ साझा की। उस खबर की निंदा की। मैं बहिष्कार कर सकती थी लेकिन, तब मैं जहां अपनी बात पहुंचाना चाहती थी, वहां तक कैसे पहुंचा पाती? मैं एक पत्रकार होने के नाते भी उस खबर पर जागरण से बहुत खफा हूं।

रिपोर्टर की संवेदनहीनता पर दुखी हूं कि उससे लिखा कैसे गया? जिसने हेडिंग लगाई, उसके भीतर का मनुष्य क्या मर गया था? इतना सेंसेटिव मामला है और उस पर बहुत संभल कर, संवेदना के साथ रिपोर्ट लिखना सीखा है हमने। हम खबर लिखते हुए जजमेंटल नहीं हो सकते। यह पाप तो जागरण से हुआ है। इसकी माफी उन्हें जरुर मांगनी चाहिए। यह उनके दीन ईमान पर छोड़ते हैं लेकिन, अखबार का एक अलग मंच है संवादी। वहां लगभग सारे वक्ताओं ने मंच से खबर की निंदा की और विरोध जताया। आयोजकों ने हमें बोलने से रोका नहीं।

अब बात संवादी में भाग लेने की बात! दो महीना पहले मैं आमंत्रण स्वीकार कर चुकी थी और मेरा टिकट भी उसी समय आ गया था। मैंने जागरण से और कोई आतिथ्य नहीं लिया। पटना में मेरा घर है। कुछ भाईयों को लग रहा है कि महज फ्लाइट की टिकट के लिए हम लोग संवादी में आए।

तो भाईयों… या तो तुम मेरी आर्थिक हैसियत नहीं जानते, या मुझे लोभी समझते हो। चोरों को सारे नजर आते हैं चोर। अपने दम पर, अपने पैसे से दुनिया घूम चुकी हूं। पटना आने के लिए टिकट की मोहताज नहीं। अब बात संवादी में आने की। मैं स्त्री विरोधी मुद्दे पर पहले भी बहिष्कार कर चुकी हूं। तब दोस्तों ने समझाया था कि तुम्हें भागना नहीं चाहिए था, मंच पर जाकर विरोध जताओ। मैंने वही किया।

मुझ पर नेतागीरी नहीं चलेगी। मुझे स्त्री-विमर्श का पाठ न पढ़ाएं। मेरे काम को ख़ारिज करने की औक़ात नहीं आपकी। स्त्रियों के प्रति मेरे कमिटमेंट पर सवाल उठाने से पहले अपने जीवन में झांक लो कि कितनी औरतों को तबाह किया। कितनी स्त्रियों को दूसरी स्त्री के विरुद्ध खड़ा कर दिया। और अंत में… क्रांति के बहाने पर्सनल अकाउंट सेटल न करें।

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