स्वेता सिंह के साथ पुरस्कार मिलने पर झूम उठे पंकज शर्मा

स्वेता सिंह के साथ पुरस्कार मिलने पर झूम उठे पंकज शर्मा
समारोह में पुरस्कृत किये गये साथियों और स्वेता सिंह के साथ पंकज शर्मा।
समारोह में पुरस्कृत किये गये साथियों और स्वेता सिंह के साथ पंकज शर्मा।
कोई भी किशोर जब माधुर्याव्स्था में कदम रखता है, तो जीवन को लेकर कुछ-कुछ सोचने लगता है। सपने गढ़ने लगता है, उन्हें पूरा करने की कामना करने लगता है, पर जो कामना तक सीमित रह जाते हैं, उनके सपने धुंधले होकर स्याह काले हो जाते हैं और फिर दिखाई भी नहीं देते, लेकिन जो उस दिशा में कर्म भी करते हैं, उनके सपने न सिर्फ साकार होते हैं, बल्कि वे स्वयं उस शिखर पर पहुंच जाते हैं कि उनके पीछे खड़े युवा उनके जैसा बनने का सपना देखने लगते हैं, ऐसे ही एक युवा, जुझारू और कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं पंकज शर्मा।
पंकज शर्मा मूल रूप से बदायूं जिले के रहने वाले हैं और वर्तमान में आज तक चैनल में सीनियर प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। कई सारे सराहनीय कार्यक्रमों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, उन्हें नोयडा में आयोजित किये गये एक समारोह में 5 जून को पुरस्कृत किया गया, इस पर उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट शेयर की है, जिसमें अपने तमाम साथियों, शिक्षकों, मित्रों और श्रेष्ठजनों को आभार जताया है, जो निम्नलिखित है… ख्वाब सच होते हैं… अगर उनमें ईमानदारी और मेहनत हो तो, मैंने कोई कहानी आजतक ऐसी नहीं पढ़ी, जिसके अंत में ईमानदारी, मेहनत या सच्चाई हार गई हो। वक्त लग सकता है… 2 बरस… 5 बरस…15 बरस या और ज़्यादा… लेकिन ख्वाब सच होते हैं, मैंने देखा है उन्हें सच होते हुए।
आदरणीय स्वेता सिंह जी, इन्हें टीवी पर देखा करता था और एक ख्याल मन में आया करता था कि एक रोज़… रहती ज़िंदगी में… शायद कभी उनसे मिला, तो ये बात कहूंगा कि आपकी ऊर्जा से प्रेरणा मिलती है, ख्वाबों को सच करने का जुनून मिलता है, क्योंकि अब जब आपके साथ काम करने का सौभाग्य मिला है, तो देखा है आप सुबह ऑफिस में होती हैं, शाम को हैदराबाद, अगले दिन दोपहर बनारस और फिर रात के 9 बजे स्टूडियो में खबरदार करते हुए। हम थक जाते हैं आपका अनुसरण करते हुए, लेकिन आपके चेहरे पर शिकन नहीं मिलती… कल आपके पास खड़ा था… ये मेरे जीवन की उपलब्धि थी… सामने पत्रकारिता के भीष्म पितामह पूज्य राम बहादुर राय साहब खड़े थे, परम आदरणीय सूर्य प्रकाश जी खड़े थे, इंद्रेश जी खड़े थे… न मेरी जुबान साथ दे रही थी, न पैर, और न हाथ, लेकिन आपने बड़ी सहजता से मुझे सहज किया अपने स्नेह से… जैसे हमेशा किया है मेरे नर्वस होने पर… आभारी रहूंगा आपका हमेशा…
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