गौरी लंकेश का नक्सल समर्थक होने को लेकर भाई से हुआ था बड़ा विवाद

गौरी लंकेश का नक्सल समर्थक होने को लेकर भाई से हुआ था बड़ा विवाद

वामपंथी विचारधारा की कट्टर समर्थक और दक्षिणपंथी विचारधारा के विरोध में किसी भी हद तक जाने वाली पत्रकार गौरी लंकेश को कर्नाटक के शहर बेंगलुरु स्थित राज राजेश्वरी नगर में घर का दरबाजा खोलते समय 5 सितंबर 2017 को गोलियों से भून दिया गया। हत्या की वारदात की गुत्थी अभी सुलझी नहीं है, लेकिन वामपंथी भाजपा विरोध को आधार बनाते हुए भाजपा नेताओं को ही हत्यारा करार देते नजर आ रहे हैं, वहीं भाजपा समर्थक वामपंथियों को कोसते हुए दिवंगत गौरी लंकेश के बारे में भी कठोरतम टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं, इस निरर्थक युद्ध में गौरी लंकेश का अतीत पूरी तरह छुप गया है, इसलिए गौरी लंकेश के बारे में यहाँ कुछ ऐसा बताने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते।

दिवंगत गौरी लंकेश का जन्म लिंगायत समुदाय में हुआ था, यह इसलिए बताया कि लिंगायत समुदाय स्वयं अलग धर्म की मान्यता देने की मांग करता रहा है एवं इस समुदाय के लोग दफनाये जाते हैं। गौरी लंकेश का जन्म 29 जनवरी 1962 को हुआ था, उनके पिता कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक, कवि एवं पत्रकार थे, साथ ही फिल्म निर्माता भी थे, उन्हें निर्माता के रूप में पुरस्कार मिला था, उन्होंने वर्ष- 1980 में लंकेश नामक कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत की थी। गौरी के एक बहन कविता और एक भाई इंद्रजीत है। कविता फिल्म जगत में है, वहीं गौरी ने पत्रकारिता को चुना, तो बेंगलुरू में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से जुड़ गईं। कॉलेज के दिनों में ही चिदानंद राजघट्ट से प्रेम हो गया, जिनसे पांच वर्ष बाद रिश्ता समाप्त हो गया। चिदानंद अमेरिका में चर्चित स्तंभकार हैं।

तलाक के बाद गौरी ने बेंगलूरू में ही 9 वर्षों तक ‘संडे’ मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम किया, इस बीच वर्ष- 2000 में उनके पिता पी. लंकेश का हृदयाघात से निधन हो गया, उस समय गौरी दिल्ली में इनाडु के तेलुगू चैनल से जुड़ गई थीं, जिसके बाद गौरी और भाई इंद्रजीत ने पिता की पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ को संभाल लिया। गौरी ने संपादकीय दायित्व और इंद्रजीत ने व्यवसायिक दायित्व संभाला, पर एक वर्ष के बाद ही विचारधारा को लेकर दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए। वर्ष- 2005 में हालात तब बेकाबू हो गये, जब पत्रिका में गौरी की सहमति से नक्सलवादियों के पक्ष में पुलिस पर किये गये हमले की रपट छपी। 13 फरवरी 2005 को पत्रिका के मुद्राधिकार और प्रकाशनाधिकार रखने वाले इंद्रजीत ने नक्सलवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाकर रपट वापस ले ली, साथ ही 14 फरवरी को इन्द्रजीत ने गौरी के विरुद्ध पुलिस में प्रकाशन कार्यालय से कंप्यूटर, प्रिंटर और स्कैनर चुराने की शिकायत कर दी। गौरी ने भी इंद्रजीत पर बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया। 15 फरवरी को इंद्रजीत ने पत्रकार वार्ता बुलाकर गौरी पर पत्रिका के द्वारा नक्सलवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, वहीं गौरी ने पत्रकार वार्ता कर के खंडन किया, इस हाई-प्रोफाइल घटनाक्रम के बाद गौरी ने अपनी कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ का प्रकाशन शुरु किया, जिसमें एक झूठी खबर प्रकाशित करने पर उन्हें न्यायालय ने दंडित किया, पर वे जमानत पर छोड़ दी गईं। चौंकाने वाली बात यह है कि गौरी का अंतिम संपादकीय फेक न्यूज पर ही लिखा गया है।

यह भी बता दें कि पूर्व पति चिदानन्द से गौरी के आशा और ऊषा नाम की नाम दो बेटियां हुई थीं, जो तलाक के बाद पति के पास ही रहीं, वे अब जॉब करती हैं। हत्या के बाद चिदानंद ने गौरी के संबंध में फेसबुक पर पोस्ट शेयर की है, जिसमें उन्होंने गौरी के बारे में लिखा है कि लेफ्टिस्ट, रेडिकल, हिंदुत्व-विरोधी और सेकुलर नहीं थी, बल्कि “दोस्त, पहला प्यार और सादगी का सर्वोच्च उदाहरण” थी। काफी लंबी पोस्ट में उन्होंने एक दिलचस्प बात भी शेयर की है। चिदानंद के अनुसार कॉलेज में गौरी को उनका सिगरेट पीना पसंद नहीं था। उन्होंने बाद में सिगरेट पीना छोड़ दिया, पर तब तक गौरी खुद सिगरेट पीने लगी थीं।

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