इस घोड़े के पैर का घाव भरते ही अवतार ले लेंगे भगवान विष्णु

इस घोड़े के पैर का घाव भरते ही अवतार ले लेंगे भगवान विष्णु

धर्म भारत की आत्मा है, इस भू-भाग में रहने वाला हर व्यक्ति अदृश्य शक्ति को सर्वाधिक महत्व देता है। आस्तिक होने के चलते भारतीयों का दुरूपयोग भी होता रहा है। किसी ने आस्था को सम्मान देकर राज किया तो, किसी ने आस्था को दरकिनार कर आहत किया और किसी ने आस्था के बल पर जमकर धन जमा कर लिया, यह सब प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। धर्म के नाम पर भारतीय कई बार ठगे गये हैं पर, चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीयों की आस्था और श्रद्धा धर्म के प्रति आज भी प्रचंड दौर में है। धर्म के प्रति आस्था का ही चमत्कार है कि जिस भगवान का अवतार होने में अभी बहुत समय शेष है, उस अवतार की भी न सिर्फ पूजा-अर्चना की जा रही है बल्कि, उसके मंदिर बन रहे हैं, चित्र बिक रहे हैं और उसके नाम पर जमकर दान बटोरा जा रहा है।

जी हाँ, बात की जा रही है कल्कि भगवान की। श्रीमद्भागवतमहापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाओं का वर्णन है, इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में कहा गया है कि “सम्भल ग्राम मुख्यस्य ब्राह्मणस्यमहात्मनः भवनेविष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।”, इस अवतार को ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से जाना जायेगा, जो विष्णु के 24 अवतारों में 24वाँ तथा प्रमुख अवतारों में दसवाँ और अंतिम  अवतार होगा, इसके बाद सतयुग की स्थापना हो जायेगी, इनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के भाई होंगे। याज्ञवलक्य पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे, इनकी लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा नाम की दो पत्नियाँ होंगी, जिनसे जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक नाम की संतानें होंगी। देवदत्त नाम के घोड़े पर सवार होकर वे सतयुग की स्थापना करेंगे।

अवतार के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। जन्म स्थान संभल को लेकर भी मतभेद हैं। कोई संभल को उड़ीसा में, कोई हिमालय क्षेत्र में, कोई पंजाब में, कोई बंगाल में, कोई शंकरपुर क्षेत्र में और कोई चीन के गोभी मरूस्थल क्षेत्र बसी संभल को मानता है, कोई वृन्दावन को भी संभल मानता है और अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश के जिला संभल को मानते हैं। संभल का शाब्दिक अर्थ समान रूप से भला करना, शांति स्थापित करना होता है, इसलिए कोई शाब्दिक अर्थ निकाल कर जन्म स्थान तय कर रहा है और कोई नाम को ही महत्व दे रहा है, यह अभी तक बहस का ही विषय बना हुआ है।

जो अवतार अभी तक सिर्फ कल्पना में है, जिस अवतार के जन्म स्थान को लेकर बहस छिड़ी हुई है, उस अवतार के असंख्य मंदिर बन चुके हैं, जहाँ उसकी पूजा-अर्चना की जा रही है, उसके नाम पर दान लिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि भगवान का मन्दिर बन गया है, जहाँ अक्टूबर-नवम्बर माह में ”कल्कि महोत्सव“ मनाया जाने लगा है। राजस्थान के जयपुर में बड़ी चौपड़ से आमेर की ओर जाने वाली सड़क पर हवा महल के सामने भगवान कल्कि का मन्दिर जयपुर के संस्थापक सवाई जय सिंह ने सन् 1739 ई. में दक्षिणायन शिखर शैली में बनवाया था, यहाँ घोड़े के बाएँ पैर में गड्ढा सा है, जो स्वतः भर रहा है, उसके भरने पर ही कल्कि भगवान प्रकट होंगे, ऐसी मान्यता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा में गोवर्धन स्थित श्री गिरिराज मन्दिर परिसर में कल्कि भगवान का मन्दिर स्थापित है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दुर्गाकुण्ड स्थित दुर्गा मन्दिर परिसर में हनुमान मन्दिर के साथ कल्कि भगवान का मन्दिर स्थापित है। उत्तर प्रदेश में सीतापुर के प्रसिद्ध नैमिषारण्य तीर्थ में कल्कि मंदिर भी है, इसी तरह दिल्ली में अजमेरी गेट, मादीपुर, पंजाबी बाग, कालका जी, नेहरू प्लेस, अमृत परिसर, महरौली, बृज घाट, चांदनी चौक, करोड़ीमल कॉलेज परिसर, हंसराज कॉलेज के सामने, युमना बाजार सहित अन्य तमाम स्थानों पर कल्कि मंदिर बन गये हैं।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर के साथ नेपाल में भी कल्कि मंदिर बन चुके हैं। ”कल्कि पीठ“, ”कल्कि पीठाधीश्वर“, ”कल्कि अवतार फाउण्डेशन इण्टरनेशनल“, ”श्री कल्कि बाल वाटिका“ नाम से तमाम संस्थायें चल रही हैं। नेपाल में विश्व का पहला सरकारी बैंक ”श्री कल्कि बैंक“ खोला गया है। संत मावजी महाराज के अनुयायी पिछले पौने तीन सौ वर्षों से भावी अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संत मावजी महाराज बेणेश्वर धाम के आद्य पीठाधीश्वर रहे हैं। संत मावजी के भक्त “निष्कलंक सम्प्रदाय” के माने जाते हैं। निष्कलंक सम्प्रदाय के मंदिर साबला, पुंजपुर, वमासा, पालोदा, शेषपुर, बांसवाड़ा, फतेहपुरा, घूघरा, पारडा, इटिवार, संतरामपुर आदि स्थानों पर बन चुके हैं।

सवाल यह है कि अभी जो शक्ति है ही नहीं, उसकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों को क्या लाभ होगा? एक और भ्रान्ति यह है कि कल्कि को भगवान कहा जा रहा है, जबकि “निष्कलंक अवतार” होगा। कलयुग एक मात्र ऐसा युग है, जिसका नाम नकारात्मक शक्ति के नाम पर है, इसी को समाप्त करने को “निष्कलंक अवतार” होगा, जबकि धर्म को धंधा बनाने वाले पूजा-अर्चना नकारात्मक शक्ति की करा रहे हैं। जब इंसान पूरी तरह मशीनों का गुलाम हो जायेगा, सत्य भूल जायेगा, खान-पान बिगड़ जायेगा, सूरज की रौशनी झेलने की शक्ति नहीं रहेगी, शांति पूरी तरह समाप्त हो जायेगी, चारों ओर सिर्फ दहशत होगी, वह समय ही कलयुग का अंतिम समय होगा और उसी समय “निष्कलंक अवतार” होगा और मान्यता है कि सवाई जय सिंह द्वारा बनवाये गये घोड़े के पैर का घाव उस समय तक ही भर पायेगा।

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