मोहन की मुरलिया बाजे … जोगन बन जाऊँगी सैंया तोरे कारन

मोहन की मुरलिया बाजे … जोगन बन जाऊँगी सैंया तोरे कारन

बदायूं को देश और दुनिया में बहुत बड़ा वर्ग शकील बदायूंनी के नाम से ही जानता है। जिनके नाम से जन्म भूमि जानी जाती है, ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम हैं, उन लोगों में से ही एक हैं शकील बदायूंनी। शकील अपनी जन्म भूमि बदायूं के नाम को दुनिया भर में फैला कर आज ही के दिन शरीर छोड़ गये थे। निधन के समय उनकी उम्र मात्र 53 वर्ष ही थी लेकिन, तपेदिक के चलते उन्हें असमय जाना पड़ा।

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शकील बदायूंनी तखल्लुस है, असली नाम अब्दुल गफ्फार अहमद था। 3 अगस्त 1916 को मोहल्ला बैदो टोला में मौलवी जमील अहमद के घर जन्मे अब्दुल गफ्फार अहमद ग्रेजुएट तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद पूर्ति विभाग में नौकरी करने लगे, इसी दौरान वे शकील बदायूंनी के नाम से गजल और शायरी वगैरह लिखने लगे। वर्ष- 1945 में देहली में आयोजित किये गये एक मुशायरा में उन्होंने भाग लिया तो, उनकी रचनायें सुन कर मंचासीन शायर एक बार में ही शकील बदायूंनी को जान गये। मुशायरे में शकील बदायूंनी का परिचय हुआ, जिसके सहारे में वे मुंबई पहुंच गये और वहां तेजी से अपनी अलग जगह बनाते चले गये। चौहदवीं का चाँद हो या अफताब हो … के लिए उन्हें पहला पुरस्कार मिला।

इसके अलावा इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के … छोड़ बाबुल का घर … गुजरे हैं आज इश्क में हम उस मुकाम से … तेरा ख्याल दिल से भुलाया न जायेगा … बेकरार कर के हमें यूं न जाइए … इंसाफ का मंदिर है, यह भगवान का घर है … मुझे तुमसे मोहब्बत है मगर, मैं कह नहीं सकता … ऐ हुस्न जरा जाग, तुझे इश्क जगाए … तमन्ना लुट गई फिर भी मेरे दम से मोहब्बत है … बचपन की मोहब्बत को दिल से न जुदा करना … मोहन की मुरलिया बाजे … जोगन बन जाऊँगी सैंया तोरे कारन … मोरी छम-छम बाजे पायलिया … कहीं दीप जले कहीं दिल … मेरा यार बना है दूल्हा और फूल खिले हैं दिल के … न जाओ सैंया छुड़ाके बैंया … सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे … एक शहँशाह ने बनवा के हँसी ताजमहल … दिल की दुनिया उजड़ गई और जाने वाले चले गए … बचपन के दिन भुला न देना … आज मेरे मन में सखी बाँसुरी बजाए कोई … ओ दुनिया के रखवाले … जैसे फिल्मी गीत आज भी लोग हर दिन गुनगुनाते दिख जाते हैं, ऐसे ही तमाम गीत हैं, जो सृष्टि के अंत तक लोगों के दिलों में बसे रहेंगे, इसके अलावा भी उनकी तमाम रचनायें हैं, जिन्हें साहित्य प्रेमी उच्चकोटि की रचनायें मानते हैं।

प्रेम, धर्म, आस्था, समाज, देश और प्रकृति के साथ हर क्षेत्र को अपनी रचनाओं में शामिल करने वाले शकील बदायूंनी बहुत ही जल्दी 20 अप्रैल 1970 को दुनिया को अलविदा कह गये थे, वे टीबी से ग्रस्त थे। दो बेटे और दो बेटी के रूप में उनके चार संतानें हुईं, जिनमें एक बेटी का भी निधन हो गया, उनके बेटे मुंबई में ही रहते हैं। जिस घर में शकील बदायूंनी जन्मे थे, वह जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में हैं, उनकी याद में बदायूं के एक मार्ग का नाम रखा है।

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