बेलगाम अफसर

बदायूं के एसपी ऑफिस के सामने बैठे आम आदमी

            उत्तर प्रदेश में सत्ता के साथ व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो पा रहा है। समाजवादी पार्टी का शासन कायम हो गया है, पर समाजवाद दूर तक नहीं दिख रहा। चारों ओर लोक पर तंत्र ही हावी दिख रहा है। आम आदमी के सम्मान और स्वाभिमान की चिंता किसी को नहीं है। सरकारी कार्यालयों में आम आदमी के साथ गुलामों जैसा व्यवहार होता दिख रहा है। पुलिस थानों में तो आत्म दाह तक की घटनायें होने लगी हैं। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी दलाल और माफियागीरी पर चिंता जता चुके हैं, क्योंकि समाजवाद का अर्थ और उद्देश्य आम आदमी को सम्मान का जीवन दिलाना ही होना चाहिए। लोकप्रिय और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस ओर ध्यान देना ही होगा, वरना लापरवाह अफसर और भ्रष्ट बाबू मिल कर समाजवादी पार्टी की सरकार का हस्र बहुजन समाज पार्टी जैसा ही करा देंगे।

                                                   बेलगाम अफसर

देश के मालिक के नाम से प्रख्यात आम आदमी की दशा का चरित्र-चित्रण किया जाये, तो गांव का राशन डीलर पंक्तिबद्ध खड़ा कर आम आदमियों के नाम ऐसे पुकारता है, जैसे खैरात बांट रहा हो। अस्पताल में पर्ची बनाने से लेकर डाक्टर के पास जाने तक दस से ज्यादा बार झिडक़ दिया जाता है इसी आम आदमी को। रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते समय बीस हजार का नौकर इसी आम आदमी से गुलाम से भी बद्तर व्यवहार करता देखा जा सकता है। रोडवेज की बस में धक्के खाता हुआ आम आदमी परिचालक के पास आकर टिकट लेेने में असमर्थ हो, तो घूर कर परिचालक यही कहता देखा जा सकता है कि इतने आराम पसंद हो, तो अपनी गाड़ी में क्यूं नहीं चलते? अन्नदाता अपनी धरती माता को बचाने के लिए चकबंदी विभाग के एसीओ, सीओ और एसओसी वगैरह के यहां भिखारियों से भी बुरी स्थिति में नजर आता है। बैंक में तो आम आदमी के साथ देश द्रोहियों जैसा व्यवहार होता देखा जा सकता है, इसी तरह जिलाधिकारी से मिलने आये एक बुजुर्ग आम आदमी को खांसी आ गयी, तो सरकार का सफेद टोपा धारण किये साहब ने उस आम आदमी को ऐसे डांटा कि उसे फिर खांसी नहीं आई, जबकि खांसी की बीमारी भगाने के लिए वह अपने ऊपर तमाम तरह के नुस्खों का प्रयोग कर चुका था। यही आम आदमी एसपी साहब से मिलने पहुँचा, तो लाल आंखों को और बड़ा कर दुत्कारते हुए लाल टोपी वाला सिपाही बोला कि घर में काम धंधा नहीं है, जो सुबह-सुबह ही आ धमकते हो। आम आदमी गिड़गिड़ाया कि साहब, बहुत परेशान हैं, मिला दो। पुन: झिडक़ता हुए सिपाही बोला- उधर बैठ जाओ और चुप बैठना, अंदर विधायक जी बैठे हैं, उन्हें निकल आने दो बाहर, चालीस-पचास लोग इकटठे हो जायेंगे, तो एक साथ मिला देंगे। करीब एक घंटे बाद विधायक जी निकले, तो आम आदमी की आंखों में चमक आ गयी कि अब उसकी मुलाकात हो जायेगी, तभी सत्ताधारी पार्टी का एक खास आदमी आ गया और वह साहब के साथ एसी रूम में बैठ कर ऐसा व्यस्त हुआ कि पता ही नहीं चला कि कब एक घंटा गुजर गया? उस खास आदमी के निकलने से पहले बाहर पचास से अधिक आम आदमी जमा हो चुके थे, सभी मिलने को आतुर थे, लेकिन तभी चौथे स्तंभ के कुछ ठेकेदार आ धमके और एसी रूम में बैठ कर साहब की कार्यप्रणाली को विश्व स्तरीय बताते रहे, पर आम आदमी का ख्याल तक किसी को नहीं आया। ऑफिस से उठने का समय हो गया, तो साहब बाहर निकले। बाहर पचास-साठ लोगों की भीड़ देख कर साहब का सिर भन्ना गया। सिपाही की ओर इशारा करते हुए साहब ने कहा कि सबसे प्रार्थना पत्र लेकर जमा कर लो। सिपाही ने दौड़ कर सभी के हाथों से कागज के टुकड़े झपट लिये और पूरी की पूरी गड्डी स्टेनो के पास पटक दी। अब स्टेनो को समय मिल जायेगा, तो आम आदमी को न्याय भी मिल जायेगा, पर पता नहीं कि कब आयेगा वो दिन? उत्तर प्रदेश के हर हिस्से की लगभग यही कहानी है। आम आदमी कांग्रेस से तंग है, बसपा के कुशासन से आजिज आ ही चुका था, सांप्रदायिक भाजपा से तो पहले से ही नाराज है, तभी तो उसने समाजवाद को चुना है और जब चुन ही लिया है, तो सर्वश्रेष्ठ ही है, ऐसे में आलोचना करने वाले विरोधी ही होंगे, ऐसी सोच सपा नेताओं में बढ़ती जा रही है, पर समाजवाद के कट्टर पक्षधर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी चिंतित हैं, फिर कैसे कहा जा सकता है कि समाजवाद आगे बढ़ रहा है। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यह समझना ही होगा कि उनके शासन की कमियों को उजागर करने वाले उनके शुभचिंतक ही हैं। अफसरों की कागजी आंकड़ेबाजी से वह दूर ही रहें, वरना यह भ्रष्ट और लापरवाह अफसर यह भी कहना सिखा देंगे कि कमियां उजागर करने वाले विरोधी हैं। उन्हें यह भी याद रखना होगा कि ऐसी सोच आते ही समाजवाद का सपना एक बार फिर टूट जायेगा। समाजवाद के सपने को जागृत रखने की बजाये, सपना साकार करने की अहम् जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही है, इसलिए उन्हें आईएएस और आईपीएस को एसी से बाहर निकाल कर गांव की ओर दौड़ाना होगा, आम आदमी सेे सम्मान से बात करने की हिदायत देनी होगी। अगर, वह ऐसा नहीं कर पाये, तो दूसरी कोई युक्ति नहीं है, जिसके सहारे समाजवाद का पहिया आगे बढऩे लगे।

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