आप ने नरेंद्र मोदी का निष्कंटक दौड़ता घोड़ा रोका

आप ने नरेंद्र मोदी का निष्कंटक दौड़ता घोड़ा रोका

 

आप ने नरेंद्र मोदी का निष्कंटक दौड़ता घोड़ा रोका
आप ने नरेंद्र मोदी का निष्कंटक दौड़ता घोड़ा रोका

 

चुनाव में कौन हारेगा और कौन जीतेगा?, इसका खुलासा तो परिणाम आने के बाद ही होता है, लेकिन चुनाव पूर्व एक माहौल होता है, जिसे महसूस कर किसी की हार-जीत की संभावना व्यक्त की जाती रही है, उसी हवा की बात की जाये, तो देश भर में गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी विपक्षी दलों और व्यक्तियों पर भारी नज़र आ रहे थे। अपार शक्तिशाली राजा द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के बाद छोड़े गये घोड़े की तरह नरेंद्र मोदी का चुनावी रथ कोई छूने तक का साहस नहीं जुटा पा रहा था। प्रमुख विपक्षी पार्टी काँग्रेस भ्रष्टाचार, महंगाई के साथ मंत्रियों और नेताओं की मनमानी के कारण रक्षात्मक प्रहार भी नहीं कर पा रही थी। नरेंद्र मोदी के विरुद्ध दिया जाने वाला काँग्रेस नेताओं का हर बयान उल्टा पड़ रहा था। नरेंद्र मोदी के प्रति ईर्ष्या और उनके विरुद्ध कुछ न कर पाने की झल्लाहट काँग्रेस नेताओं के चेहरे पर स्पष्ट झलकती नज़र आती थी।

क्षेत्रीय दलों की बात करें, तो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा हाशिये पर थी, लेकिन नरेंद्र मोदी के ग्लैमर ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को पुनः झटके से खड़ा कर दिया। उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी की नीतियों ने नरेंद्र मोदी का काम और आसान कर दिया। नरेंद्र मोदी गुजरात दंगों को भुना रहे हैं, तो उन्हीं की राह पर चलते हुए सपा भी यूपी के दंगों को भुना कर बराबरी पर आने का प्रयास कर रही है। ग्लैमर की दृष्टि से हाई-फाई रैलियां आयोजित कर सपा नरेंद्र मोदी पर भारी ही रही है, पर जमीन पर माहौल सपा के विरुद्ध है, जिसका लाभ नरेंद्र मोदी को मिलता नज़र आ रहा है। बिहार की बात करें, तो भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने और कॉंग्रेस द्वारा समर्थन देने के बाद से उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है, साथ ही वहां हुए बम धमाकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि को तार-तार कर दिया, इसलिए नरेंद्र मोदी बिहार में भी छाये हुए थे। महाराष्ट्र की जमीन कट्टरपंथियों के लिये उपजाऊ मानी जाती है। कट्टरपंथियों के बाला साहब ठाकरे निर्विवाद नेता बने रहे। उद्धव ठाकरे की कट्टरपंथी छवि नहीं है, उनके मुकाबले राज ठाकरे ज्यादा पसंद किये जाते हैं, यह बात बाला साहब ठाकरे के सामने ही सिद्ध हो गई थी, लेकिन राज ठाकरे का मुंबई के बाहर कोई अस्तित्व नहीं है और उनकी न ही कोई राजनैतिक सोच है, इसीलिये नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र में भी छाये हुए थे। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में भाजपा की सरकार आने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन उन कारणों को दबा कर नरेंद्र मोदी का मतदाताओं पर हुआ जादुई असर ही बड़ा कारण बताया जा रहा है। देश के बाक़ी हिस्सों में भी नरेंद्र मोदी विपक्षियों पर भारी पड़ रहे थे।

अब बात मीडिया की करें, तो विपक्ष विहीन अवस्था में जैसा होना चाहिए, वैसा ही हो रहा था। नरेंद्र मोदी के सवालों का विपक्ष के पास कोई सटीक जवाब नहीं था। गुजरात के दंगों पर आलोचना करने के अलावा विपक्ष के पास कुछ नहीं था, इसीलिए विपक्षियों की आलोचना नरेंद्र मोदी के हित में ही काम कर रही थी। एक ही बिंदु पर लगातार आलोचना नहीं की जा सकती, इसीलिए नरेंद्र मोदी चैनल, अखबार, फेसबुक, ट्वीटर के साथ अन्य तमाम सोशल साइट्स पर छाये हुए थे। भारत का हर नागरिक उन्हें नेता नहीं मान रहा था, लेकिन विपक्ष में कोई नेता न होने के कारण विरोधी मानसिकता वाला वर्ग शांत था, इसलिए चारों ओर नरेंद्र मोदी ही नज़र आ रहे थे, तभी भाजपा का पूर्ण बहुमत में आना और नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना निश्चित माना जा रहा था, इस बीच आम आदमी पार्टी का उदय हुआ, तो नेता विहीन शांत बैठे लोग उससे जुड़ गये। यहाँ ध्यान देने की ख़ास बात यह है कि जो लोग नरेंद्र मोदी के साथ नहीं जा सकते थे और जो लोग कॉंग्रेस के साथ थे, अधिकांशतः वे लोग ही आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं, इसीलिए दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 28 सीट मिलीं और काँग्रेस को आठ। नरेंद्र मोदी के साथ जो लोग जुड़े हुए थे, वे नरेंद्र मोदी को छोड़ कर आम आदमी पार्टी के साथ गये होते, तो आम आदमी पार्टी की पचास से भी अधिक सीटें आतीं और भाजपा बीस सीटों पर सिमट कर रह गई होती।

नरेंद्र मोदी के समर्थक तो उनके अलावा किसी और की सुनने को तैयार ही नहीं हैं, लेकिन जो नरेंद्र मोदी के समर्थक नहीं थे, वे किसी और की इसलिए नहीं सुन रहे थे कि उनके पास सुनाने को कुछ था ही नहीं, सो व्यथित लोग शांत बैठे थे, इसी अवस्था का लाभ आम आदमी पार्टी को मिला। आम आदमी पार्टी हाल ही में बनी है और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल गैर-राजनैतिक व्यक्ति हैं, इसलिए नरेंद्र मोदी के साथ लोग उनकी बात सुनने को तैयार हो गये हैं। आम आदमी पार्टी भले ही नई होती, लेकिन उसे किसी पुराने नेता ने ही बनाया होता, तो लोग इस तरह उससे न जुड़ पाते।

खैर, अब अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी के विरोध में खड़े हैं और नरेंद्र मोदी के विचारों से मेल न खाने वाले लोग उनकी ओर निहार रहे हैं। दिल्ली में लोग बड़ी संख्या में उनसे जुड़ चुके हैं, लेकिन दिल्ली से बाहर के लोग उनसे तब जुड़ेंगे, जब वह यह सिद्ध कर देंगे कि उनके क्षेत्र में वह एक सशक्त विपक्षी हैं। जहां-जहां वह नरेंद्र मोदी के प्रमुख विपक्षी बनते जायेंगे, वहां-वहां नरेंद्र मोदी की विचारधारा से मेल न खाने वाले लोग उनसे जुड़ते जायेंगे, लेकिन इससे नरेंद्र मोदी को जमीनी तौर पर कोई नुकसान होता नज़र नहीं आ रहा। आम आदमी पार्टी के फैलने से नुकसान भाजपा और नरेंद्र मोदी के विरोधी दलों को होगा, जिससे भाजपा को फायदा होगा, क्योंकि विरोधी मतों का विभाजन होने से भाजपा प्रत्याशी आसानी से जीत जायेंगे।

बी.पी.गौतम
बी.पी.गौतम

कट्टरपंथी, उदारवादी, जातिवादी और तटस्थ श्रेणी में मतदाताओं को विभाजित कर दें, तो अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी अभी किसी भी श्रेणी का प्रतिनिधित्व करती नज़र नहीं आ रही, ऐसे में अगर, वह कट्टरपंथी बनने का प्रयास करेंगे, तो हिन्दू कट्टरपंथी तब पसंद करेंगे, जब वह खुद को नरेंद्र मोदी से बड़ा कट्टरपंथी सिद्ध कर दें और अगर, हिन्दू कट्टरपंथी बन गये, तो बाकी धर्मों के मतदाता दूर हो ही जायेंगे। अगर, उदारवादी छवि बना कर चलते हैं, तो हिन्दू-मुस्लिम कट्टरपंथी दूर ही रहेंगे और अरविंद केजरीवाल जातिवादी राजनीति की राह पर चले, तो अधिकाँश जातियों के अपने-अपने नेता पहले से ही हैं, ऐसे में जातियों को लुभा पाना इतना आसान काम नहीं होगा। तटस्थ मतदाताओं की बात करें, तो उनकी संख्या अभी इतनी नहीं है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सके। गठबंधन की राजनीति अरविंद केजरीवाल के लिए और भी हानिकारक साबित होगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी का उदय इस तरह की राजनीति के विरोध में हुआ है, ऐसे में साफ़ है कि आगामी लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी दिल्ली विधान सभा चुनाव जैसा चमत्कार नहीं करने वाली। हाँ, मीडिया के सहारे निष्कंटक दौड़ रहे नरेंद्र मोदी के घोड़े के सामने वे जरूर आ गये हैं। अखबार, चैनल, फेसबुक, ट्वीटर और ब्लॉग वगैरह पर लगातार भिड़े हुए हैं, लेकिन यह सब माध्यम दिल्ली में असरदार साबित हो गये, पर दिल्ली के बाहर आज भी जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, परिवारवाद व निजी स्वार्थ हावी हैं और इस सब पर विजय प्राप्त कर लेना अरविंद केजरीवाल के लिए वाकई, चमत्कार सरीखा ही होगा।

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