तीन तलाक पर जारी किये गये बोर्ड के फॉर्म को भरें मुस्लिम

गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते डॉ. यासीन अली उस्मानी।
गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते डॉ. यासीन अली उस्मानी।

बदायूं में भी तीन तलाक का मुददा जोर पकड़ने लगा है। मोहल्ला सोथा स्थित सैय्यद मुनव्वर अली जूनियर हाई स्कूल में केन्द्र सरकार द्वारा तीन तलाक के मुददे पर हलफनामा दाखिल करने को लेकर मुस्लिम समुदाय के गणमान्य लोगों की एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें सरकार की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किये गये।
बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश राज्य श्रम संविदा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम बोर्ड के कार्यकारणी सदस्य एवं ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. मौलाना यासीन अली उस्मानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार द्वारा जो हलफनामा दाखिल किया गया है, वह अनुचित है, एक प्रकार से केन्द्र सरकार द्वारा मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप है। केन्द्र सरकार द्वारा जो सलाह विधि आयोग से मांगी है और विधि आयोग ने अपनी प्रश्नावली के अनुसार हिन्दुस्तानी शहरियों से जिस अन्दाज से सलाह मांगने का प्रयास किया है, वह उसकी नियत पर प्रश्न चिन्ह लगाता है, लिहाजा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के विरूद्ध मुसलमानों को अपनी राय देने के लिए एक फॉर्म जारी किया है, जिस पर ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को अपनी राय देने की आवश्यकता है।
डॉ. उस्मानी ने इस मुददे पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों के मानने वाले लोग रहते हैं, इसकी यह अनेकता ही इसकी एकता को विशेष बनाती है। हमारे देश के संविधान में सभी लोगों को अपने-अपने धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने की आजादी है। केन्द्र की मौजूदा सरकार इस संवैधानिक आजादी को छीन लेना चाहती है। उन्होनें अन्य जातियों एवं धर्मों के पर्सनल लॉ बोर्ड का जिक्र करते हुए कहा कि लिंगदाह समुदाय का अपना अलग पर्सनल लॉ है। आदिवासियों का अपना अलग पर्सनल लॉ है। नागालैण्ड में ईसाईयों का अपना पर्सनल लॉ है। इस हालात में भारत में कॉमन सिविल कोड का लागू होना असम्भव है।

डॉ. उस्मानी ने जोर देकर कहा कि कॉमन सिविल कोर्ड की बात करना राजनीति से प्रेरित है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केन्द्र सरकार के इस फैसले का हर स्तर पर विरोध करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि न केवल मुसलमान, बल्कि विभिन्न धर्मों के लोग भी किसी हालत में इसको स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि मुसलमानों में तीन तलाक का प्रतिशत केवल 0.5 है, जो अन्य धर्मों के मुकाबले बहुत कम है। उन्होंने कहा कि अगर महिलाओं से केन्द्र सरकार को इतनी ही हमदर्दी हो गई है, तो देश में महिलाओं से सम्बन्धित अनेक ज्वलन्त मुददे हैं, उनकी चिन्ता करना चाहिए। तीन तलाक का मुददा मुसलमानों का एक छोटा सा अन्दरूनी मामला है, जिसके लिए वह स्वयं ही चिन्तित रहते हैं और उसका हल तलाशते रहते हैं। उन्होनें तीन तलाक के मसले पर विस्तार से वर्णन किया और मुसलमान समुदाय से आह्वान किया कि वह आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का फॉर्म भरकर उसकी हस्ताक्षर की मुहिम को सफल बनायें, ताकि केन्द्र सरकार द्वारा शरियत में दखल देने का जो इरादा किया जा रहा है, उसको रोका जा सके।
बैठक में ककराला जामा मस्जिद के इमाम रफी अहमद, हाजी मज़हर हमीदी, आलम खान, सहाबे आलम, डॉ. आसिफ मसूद, जफर अहमद, उम्मी भाई, हाजी इबादुर्रहमान, फरहत अली सिददीकी, अबरार, रऊफ सिददीकी, मो. फहाद फरीद, फर्रूख फरीद, फरीद अहमद, आबाद अहमद, सलमान अहमद, याकूब सिददीकी, सालिम फरशोरी, शाह मोहम्मद, खुर्रम, खुर्शीद, शारिक हुसैन, साबिर मलिक सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।

Leave a Reply