आबिद के हटते ही सपा में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये नेता

आबिद के हटते ही सपा में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये नेता
विधायक आबिद रजा
विधायक आबिद रजा

बदायूं जिले की समाजवादी पार्टी में भूचाल सा नजर आ रहा है। सदर विधान सभा क्षेत्र के बदले राजनैतिक हालातों के चलते एक दर्जन से अधिक टिकट के दावेदार हो गये हैं। तमाम अवसरवादी भी कुलाचें मारते नजर आ रहे हैं। सपा की सदस्यता ग्रहण किये बिना कई बसपाइयों और कांग्रेसियों ने भी स्वयं को सपा का वरिष्ठ नेता लिखना शुरू कर दिया है, साथ ही बैनर व पोस्टर भी चिपका दिए हैं, जिससे जनता के बीच हास्य का पात्र बने नजर आ रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सदर विधान सभा क्षेत्र के विधायक आबिद रजा ने पार्टी के ही नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया, तो प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आबिद रजा को 7 अगस्त को पार्टी से निष्कासित कर दिया। आबिद के सपा से निष्कासित होते ही सदर क्षेत्र में सपा से टिकट मांगने वालों की बाढ़ सी आ गई। जो ग्राम प्रधान नहीं बन सकते, जो सभासद नहीं बन सकते, जो पालिकाध्यक्ष नहीं बन सकते, वे भी सीधे विधायक बनने के सपने देखने लगे हैं। हालाँकि सपने देखना और उन्हें पूरा करने की दिशा में प्रयास करना गुनाह नहीं है, लेकिन सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में कुछ ऐसा योगदान भी होना चाहिए, जिससे लगे कि यह व्यक्ति विधायक बनने लायक है। दावेदारों में कई ऐसे लोग भी हैं, जो कुछ दिन पहले आबिद रजा के इंतजार में उनके घर के बाहर सीढ़ियों पर बैठे नजर आते थे, वे अब न सिर्फ टिकट मांग रहे हैं, बल्कि आबिद को भी कोसते नजर आ रहे हैं, यहाँ इकबाल असहर का शेर पूरी तरह चरितार्थ होता नजर आ रहा है कि “सितम तो यह कि हमारी सफों में शामिल हैं, चराग बुझते ही खेमा बदलने वाले लोग।”

बुधवार को ही प्रेस कांफ्रेंस कर एक गर्म गोश्त के धंधेबाज ने सपा से टिकट की दावेदारी ठोंकी, ऐसे ही अनैतिक तरीकों से धन अर्जित करने वाले तमाम लोग चापलूसी के बल पर टिकट चाह रहे हैं। एक दावेदार ऐसे हैं, जो पहले भी चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन कभी 12 हजार वोट भी नहीं पा सके, पर कांग्रेस छोड़े बिना ही सपा नेताओं के सामने ऐसे दावे कर रहे हैं, जैसे इस बार जीत का विश्व रिकॉर्ड बना देंगे, जबकि असलियत यह है कि उनकी सपा के टिकट पर भी जमानत ही जब्त होगी, ऐसे लोग किसी तरह विधायक बन भी गये, तो हालात और भी ज्यादा भयावह कर देंगे, साथ ही ऐसे लोगों की किसी के प्रति कोई श्रद्धा नहीं होती। टिकट मिल गया, तो ठीक, वरना सपा के विरुद्ध ही जहर उगलना शुरू कर देंगे, इसलिए अवसरवादियों से सपा को बहुत दूर रहना होगा, क्योंकि जो लोग त्याग पत्र दिए बिना टिकट के लालच में सपा का गुणगान कर सकते हैं, वे भविष्य में कुछ भी कर सकते हैं, इन कुकुरमुत्तों की हरकतों पर इकबाल असहर का ही एक और शेर बिल्कुल सटीक बैठता नजर आता है कि “न जाने कितने चरागों को मिल गई शोहरत, एक आफताब के बेवक्त डूब जाने से।”

बात आबिद रजा की करें, तो उन पर तमाम गंभीर आरोप लगते रहे हैं, हिस्ट्रीशीटर रहे हैं, दुराचारियों की सूची में आज भी उनका नाम 70वें नंबर पर अंकित नजर आ रहा है। मनमानी और दबंगई के चलते अधिकांश लोग आबिद से त्रस्त थे, तभी निष्कासन के समय उनके साथ एक व्यक्ति ने पार्टी से त्याग पत्र नहीं दिया, इस सबके बावजूद सपा से टिकट मांगने वालों पर नजर डालें, तो उनमें एक भी व्यक्ति ऐसा नजर नहीं आता, जो आबिद रजा के समक्ष टिक पाये।

सदर क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें, तो यहाँ से लगातार दो बार कभी कोई व्यक्ति चुनाव नहीं जीत सका है। सदर क्षेत्र के मतदाताओं ने हमेशा परिवर्तन किया है। इस बार भी परिवर्तन होना तय नजर आ रहा था, जिसकी भनक आबिद को भी लग गई होगी, ऐसे में वे चुनाव लड़ने से मना नहीं कर सकते थे, सो स्वयं को जनता का हितैषी बताते हुए कई तरह के मुददों को हवा देने लगे। सांसद धर्मेन्द्र यादव पर हमला इसलिए बोला कि बसपा आसानी से जगह दे देगी। असलियत में आबिद रजा की चाल में समाजवादी पार्टी फंस गई है। समाजवादी पार्टी आबिद की स्क्रिप्ट के अनुसार ही चल रही है।

आबिद रजा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वे स्वयं विधान सभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं, वे अगला विधान सभा चुनाव अपनी पत्नी फात्मा रजा को लड़ाना चाहते हैं, क्योंकि स्वयं लड़े और चुनाव हार गये, तो राजनैतिक भविष्य अंधकारमय हो सकता है, लेकिन पत्नी के हारने पर उतना अपमान नहीं होगा और जीत गई, तो लोकसभा चुनाव में बसपा उन्हें आसानी से प्रत्याशी बना देगी। धर्मेन्द्र यादव बदायूं में जमीनी स्तर पर न सिर्फ लोकप्रिय हैं, बल्कि वे बेहद मजबूत हो गये हैं, उन्हें मात दे पाना किसी के लिए भी बेहद मुश्किल होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा और भाजपा उनके कद के बराबर प्रत्याशी तक नहीं खोज पाई थी। आबिद रजा सांसद धर्मेन्द्र यादव पर हमला यूं ही नहीं कर रहे, यह उनकी सोची-समझी स्क्रिप्ट का हिस्सा है। आबिद रजा ने विधान सभा और लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर स्क्रिप्ट तैयार की है, जिसकी कहानी आबिद के आसपास ही घूम रही है, इसलिए अभी तक आबिद रजा ही फायदे में नजर आ रहे हैं।

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